बुधवार, 13 मई 2020

हर कोई अपने घर लौटना चाहता है


जब जीवन की थकन
उदासियों के बोझ 
तोड़ने लगते हैं कंधे 
तो लगता है लौट जाएं अपने घर
जहां जीवन से भरी गेहूँ की बालियाँ
अब भी चैता गाती होंगी
नेह छोह के रंग अभी भी छपे होंगे
फागुन की दीवार पर
असाढ़ के भीगे दिन
सावन को गीत गाने आमंत्रित करते होंगे
भादों झरता होगा दालान की ओरी से
अब भी राह टेरती माँ
उसे देखते ही दूध भात लेकर आएगी
बाबा की आश्वस्ति भरी आंखें
मानस के स्वर
लालटेम की टिमटिमाती लौ
निरबंसियों के मटियारे गीत
सभी तो यथावत होंगे
बड़े घर का ऊंचा दरवाजा
वहीं कहीं देहरी पर दिया अब भी जल रहा होगा
जिसे बाल कर छोड़ आये थे
फलों से लदे बाग
जल से लहलहाता ताल
पनघट की रौनक
पकी फसलों वाले खेत
अन्न से भरे बखार
सब के सब समय की छीजन से अछूते होंगे

गांव कभी नही भूलता अपने बच्चों को
चौपालों में हर रोज उन्हें याद किया जाता है
जो एक एक कर चले गए होंगे
अभी भी उनके नाम के गीत गाये जाते हैं 

कोलतार की तपती सड़कों पर जलते तलुओं को
कच्चे मेड़ों की ठंडक चाहिए
बस सबको अपना गांव वाला घर चाहिए

हर कोई लौट जाना चाहता है अपने घर को

जैसे घोंसले में लौटती है बया
जैसे सांझ को लौटती हैं गायें
जैसे बाजार से लौटते हैं पिता
जैसे मायके में आती हैं बेटियां
जैसे अयोध्या लौट आये थे राम चौदह बरस बनवास से
जैसे लौट आता है पंछी फिर से जहाज पर आकाश से

पर सनद रहे
लौटना तो बादल बनकर
खेत बनकर
ताल बनकर
फूल बनकर बाग बनकर
गेंहू और धान बनकर
गीत बनकर थाप बनकर
स्नेह और विश्वास बनकर

अगर ऐसे नही  लौट पाए तो
लौटना चले जाने से भी बदतर होगा


10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

DBS College ki yaden taja ho gai
Ati sundar

Prabhanjan Kumar Mishra ने कहा…

बहुत ही खूबसूरती से संस्मरण का उल्लेख किया है आपने। साथ में यह एक आशावादी कविता है। कवि यह नही चाहते कि वापिस गांवों की सभ्यता भी शहरों से वापिस आने के वजह से दूषित हो जाएं। अतः वही लोग जाए जिनको उस माटी से प्रेम हो लगाव हो।
बहुत बहुत शुभकामनाये भैया आपके इस कविता के लिए।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

वर्तमान संदर्भ में लौटना सिर्फ मौत के भय से है।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छा ही सोचना ही सकारात्मकता है । घर में ही नाल गड़ी है , उस मोह और अपने होने का अहसास कभी मरता है ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने यदि लौटना है तो गांव को शहरी हवा को दूर रखना होगा और अपनी माटी के सच्चे सपूत बनकर कर दिखाना होगा, वर्ना गांव लौटना व्यर्थ होगा
बहुत अच्छी सामयिक रचना

डॉ. अरुण प्रकाश/ DrArrun Prakash ने कहा…

बहुत ही बढ़िया तरीके से सारी आवश्यक बातें कह दीं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक आलेख

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत गहरी बात ... सच है कुछ निश्चय कुछ विश्वास ... ये साथ हैं तो नई राह निश्चित है ... घर लौटना भी सार्थक है ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने