रविवार, 15 मार्च 2015

कान्हा पागल रोयेगा।।

प्यासी प्यासी नदी रहेगी जंगल जंगल रोयेगा।
सागर सा तन लिये उदासी मन गंगाजल रोयेगा।।

बहते दरिया को गर यूँ  ही जंजीरों में बाँधोगे,
जिस दिन सावन आयेगा उस दिन ये बादल रोयेगा।।

कभी नही लौटा बेटा जिस दिन से जा परदेस बसा, 
अबकी बारिश में भी अम्मा का फिर आँचल रोयेगा।।

सुना कि फिर से जहर पिया है इक दीवानी मीरा ने,
उस पगली के नाम से अब ये कान्हा पागल रोयेगा।।

जब जब दो दिल प्यार करेंगे याद तुम्हारी आयेगी ,
मेरी आँखे हँस देंगी पर तेरा काजल रोयेगा।।