शिलालेख पर यह अक्षय है,
मधुरे! अपना मिलना तय है।।
सुनना सांध्य गगन तारे से,
सुनना मौसम हरकारे से।
द्वार तुम्हारे जोगी आया,
सुनना उसके इकतारे से।
अहो कामिनी! मिलन यामिनी,
लेकर आता हुआ समय है।।
शिलालेख पर यह अक्षय है,
मधुरे! अपना मिलना तय है।।
हर पल तुमसे संवादित हूँ,
तुम्हे सोचकर आह्लादित हूँ।
अर्थ दिए जो मृदुल नेह के,
उसी भाव में अनुवादित हूँ।
अधरों के प्रेमिल सत्रों से,
जीवन का हर कण मधुमय है।।
शिलालेख पर यह अक्षय है,
मधुरे! अपना मिलना तय है।।
तनिक नही तुम होना चिंतित
किंचित मैं हूँ जरा विलम्बित
फूल नही वे मुरझा सकते
जिसे किया है हमने सिंचित
अरुणारे नयनों को एक दिन,
मद से भर जाना निश्चय है।।
शिलालेख पर यह अक्षय है,
मधुरे! अपना मिलना तय है।।
डॉ. पवन विजय
(चित्र: गूगल साभार)