गंगा में मिलिहें डूब कर नहइहें...अम्मा से मिलिहें त खुलकर बतिअइहें...।
गोआ की राज्यपाल आदरणीय मृदुला सिन्हा जी मात्र राजनीतिक ही नही उनका मन मस्तिष्क में देसी बोली बानी से ओत प्रोत है। उनके अनुसार सच में हिन्दी हमारी अम्मा और गंगा की श्रेणी में है। हिन्दी भले ही राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी पर हिन्दी साहित्य को बचाए रखना है। हिन्दी है भारत मां की बिंदी...हिन्दी में सजती है भारत की भाषाएं...
अंग्रेजी को देश की भाषा बनाने की कोशिशें हो रही हैं। भले ही अंग्रेजी पेट की भाषा बन गयी पर ह्रदय की भाषा तो हिन्दी ही है। आईटी के दौर में हिन्दी की अहमियत बढ़ गयी है।
हिन्दी हृदय की भाषा है।साहित्यकार ऐसे साहित्य का सृजन करें जो मात्र मनोरंजन और विलासिता का माध्यम न हो बल्कि हममें गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे जिसमें जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो। संघर्ष और गति की बातें हों ताकि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती रहे। समाज को सिर्फ उसका आइना ही नहीं दिखाएं बल्कि आगे बढ़ने के लिए पथ-प्रदर्शन भी करें।साहित्यकारों को आम लोगों के हित और कल्याण से जुड़ाव तथा साहित्य को उत्तरदायी बनने के साथ नेतृत्व की भूमिका में भी आना होगा। जिन्हें धन और वैभव से प्यार है उनका साहित्य के मंदिर में कोई स्थान नहीं होता है। हिन्दी भाषा हमारी अस्मिता, संस्कृति और साहित्यिक मूल्यों का संवाहक है। इसके प्रति अटूट आस्था रखने से हमारे सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। यह राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सहायक है।
गंगा और अम्मा की श्रेणी में हिन्दी है।मन मस्त हुआ फिर क्या बोलें...गंगा के पास हिन्दी और लोकभाषा में बात हो तो मजा ही मजा..आम लोगों को इस बात से अवगत कराने के संस्थाओं को स्कूल और कॉलेज के बच्चों को जागरूक करना होगा। हिन्दी के सबसे अधिक पाठक हैं पर कथा कहानी सुनाने की परंपरा अब नहीं रही। इस तरह के मंच तैयार करने होंगे जहां नई पीढ़ी सीधे किस्से-कहानी सुन सके। पठन-पाठन और शोध -प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
गोआ की राज्यपाल आदरणीय मृदुला सिन्हा जी मात्र राजनीतिक ही नही उनका मन मस्तिष्क में देसी बोली बानी से ओत प्रोत है। उनके अनुसार सच में हिन्दी हमारी अम्मा और गंगा की श्रेणी में है। हिन्दी भले ही राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी पर हिन्दी साहित्य को बचाए रखना है। हिन्दी है भारत मां की बिंदी...हिन्दी में सजती है भारत की भाषाएं...
अंग्रेजी को देश की भाषा बनाने की कोशिशें हो रही हैं। भले ही अंग्रेजी पेट की भाषा बन गयी पर ह्रदय की भाषा तो हिन्दी ही है। आईटी के दौर में हिन्दी की अहमियत बढ़ गयी है।
हिन्दी हृदय की भाषा है।साहित्यकार ऐसे साहित्य का सृजन करें जो मात्र मनोरंजन और विलासिता का माध्यम न हो बल्कि हममें गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे जिसमें जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो। संघर्ष और गति की बातें हों ताकि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती रहे। समाज को सिर्फ उसका आइना ही नहीं दिखाएं बल्कि आगे बढ़ने के लिए पथ-प्रदर्शन भी करें।साहित्यकारों को आम लोगों के हित और कल्याण से जुड़ाव तथा साहित्य को उत्तरदायी बनने के साथ नेतृत्व की भूमिका में भी आना होगा। जिन्हें धन और वैभव से प्यार है उनका साहित्य के मंदिर में कोई स्थान नहीं होता है। हिन्दी भाषा हमारी अस्मिता, संस्कृति और साहित्यिक मूल्यों का संवाहक है। इसके प्रति अटूट आस्था रखने से हमारे सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। यह राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सहायक है।
गंगा और अम्मा की श्रेणी में हिन्दी है।मन मस्त हुआ फिर क्या बोलें...गंगा के पास हिन्दी और लोकभाषा में बात हो तो मजा ही मजा..आम लोगों को इस बात से अवगत कराने के संस्थाओं को स्कूल और कॉलेज के बच्चों को जागरूक करना होगा। हिन्दी के सबसे अधिक पाठक हैं पर कथा कहानी सुनाने की परंपरा अब नहीं रही। इस तरह के मंच तैयार करने होंगे जहां नई पीढ़ी सीधे किस्से-कहानी सुन सके। पठन-पाठन और शोध -प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।