बुधवार, 15 अप्रैल 2020

याचना से प्रिये कुछ मिलेगा नही

याचना से प्रिये कुछ मिलेगा नही,
एक ही मार्ग है मुझपे अधिकार कर लो।

 फूल फिर भी नही कोई खिल पायेगा
शाख पर छाये कितने भी मधुमास हों।
 प्राण की प्यास ऐसे यथावत रही
 सप्त सैन्धव निरंतर भले पास हों ।।

 जो अहम् से भरा ये हृदय है मेरा,
 मान गल जाएगा मुझको अंकवार भर लो।

 सब प्रतीक्षित दिवस हैं बिना मोल के
स्वप्न में बीतती यामिनी व्यर्थ है।
दे सके ना जो प्रतिदान विश्वास के
 ऐसे पाषाण का क्या कोई अर्थ है।।

 चाह मन में हो मुझसे मिलन की शुभे,
अर्चना छोड़ कर अपना सिंगार कर लो।

 कब कलाई में कंगन है स्थिर हुआ
 कब रुकी है लहर तट पे आएगी ही।
 किसके रोके रुकी है ये पागल हवा
 कोई अंकुश नही बदरी छाएगी ही।।

 तुमको आदेश की तो जरूरत नही,
 मानिनी जब भी चाहो मुझे प्यार कर लो।