शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

जोगी बीर

गाँव की रक्षा कौन करता है? उसके लोग अगर कहीं भटक गए हैं तो उन्हें रास्ता कौन दिखाता है? लोगों को उनके आचरण से बांध कर कौन रखता है?

गाँव के सबसे ऊंचे ढीह पर विराजमान वह शक्ति जो हर ग्रामवासी के लिए कल्याणकारी है, जो उन्हे एक भावसूत में बांध ले है वही जोगी बीर है। यह पुस्तक बदलते गाँव परिवार समाज के उन्ही भावसूतों को पिरोने का एक प्रयास है।

मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक आपको आपकी जड़ों से जोड़ने में सहायता करेगी।




पुस्तक प्राप्ति का लिंक नीचे दिया है





गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

जीवन उतना ही है जितना हमने सुख से जिया

जीवन  क्या है? बहुत से दार्शनिक, ज्ञानी  ध्यानी धार्मिक पुरुषों ने सभ्यता की शुरुआत से ही इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते रहे। हम सब जीवन के बने बनाये मायने में जीवन ढूंढते रहते या अपनी तरफ से जीवन को कोई अर्थ देने में जीवन जाया करते रहते हैं। मै जब इस प्रश्न से गुजरा तो पाया कि जीवन उतना ही है जितना हमने सुख से जिया। मै सुख पूर्वक जीने को ही धर्म पूर्वक जीना मानता हूँ,  मेरा धर्म आनंद है और मेरा ईश्वर आनंद कंद सच्चिदानंद है। जिस कार्य को करने से आपको निरंतर सुख मिले वही कार्य करने योग्य है। हम गलती में अनेक हैं पर सही में एक हैं, जो सही है वही सुंदर है वही कल्याणकारी है। मेरा ईश्वर शिव है।
हम एक साथ कई तल पर जी रहे होते हैं हर तल  के सुख का अनुभव करने के लिए आपको इवाल्व होना पड़ता है। सुख का अनुभव करने हेतु आपको अपने को उस योग्य बनाना पड़ता है, आपको बारिश की बूंदों को सहजने के लिए स्वयं को सरस बनाने के लिए दोमट बनना पड़ता है नही तो आनंद की वर्षा आपके संगमरमर मन को छूकर बह जाती है और आप अपने संगमरमरी जीवन की चकाचौंध उसे महसूस नही कर पाते फिर सुख की तलाश में बाबा से लेकर ड्रग की तलाश में भटकने को ही जीवन बना बैठते हो।
जिसे सुबह शाम का सौन्दर्य देखने का  सौभाग्य जिसे प्राप्त है, वही समृद्ध और आनंदित है, वही ईश्वर के निकट है । मलय समीर का स्पर्श, आकाश को धीरे धीरे सुहागन होते देखना, पत्तों के संगीत पर पंछियों के पंचम स्वर का श्रवण, टिप टिप झरती ओस की अनुभूति, फुलवारी का मुस्कराना, भगवान भास्कर का उदित होने का जो साक्षी हुआ वही जीवन जिया, सांझ के बादल जिसने देखे उसी ने जीवन जिया ।
जीवन उतना है जितना अनुभूति किया बाकी सब कुछ और हो सकता और जीवन नही हो सकता।
हरित कुंतला  धरती प्रतिदिन सुबह अपनी झोली में सौभाग्य के मोती लाकर हम पर बिखेर देती है। हमने जितनी मुक्तामणियाँ बटोर लीं उतने ही नूपुर जीवन को झंकृत करेंगे। ध्यान रखिये कि धरती कभी ओवरटाइम नही करती, जीवन मे उतना ही काम करना है जितने से हमारा काम चल जाये, बाकी आप दूसरों के लिए बेगार करने को स्वतंत्र हैं। आप धरती पर सुख को जीने  के लिए आये हैं,  यह आनंद किसी नौकरी, व्यापार या अन्य तरीके से नही मिलने वाला बल्कि यह तो जग व्याप्त है, सहज मिलने वाला है निर्भर आपकी पात्रता करती है आप कितने सुख के हिस्से को छू पाते हैं।
 
आनंद है आनंद ही सौभाग्य है, सौभाग्य ही पुण्यों का फल है और सुखी होना ही पुण्य कर्म है।
 

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

कस्तूरी उस घाट मिलेगी


 शायद दरजा सात या आठ की बात होगी, सूरदास के पद पढने के बाद हृदय ऐसा पिघला कि मन के मानसरोवर से भाव गंगा बह निकली, तब से भाव यात्रा आजतक अनवरत चल रही है। इस भाव नदी के तट पर बने घाट कच्चे हैं, उन घाटों को आधुनिकता का पंकिल स्पर्श से बचाकर रखने की कवायद खूब करता हूँ ताकि मिटटी का गीलापन, उस पर पदचिन्ह और किनारे किनारे निर्दोष हरियर दूब को कंक्रीट और कोलतार से बचा सकूँ। मुझे हर उस चीज से असहजता है जो स्वाभाविक अभिव्यक्ति और प्रवाह को बाधित करती है आधुनिक बोध के जाल से लगभग बचते हुए ‘कस्तूरी उस घाट मिलेगी’ की रचना की गयी है।

नदी का अपने उद्गम स्थल छोड़ कर घाट पर आना ठीक वैसे ही है जैसे मायके को छोडकर कोई ब्याहता ससुराल जाती है, घाट पर उस नदी के जल में तमाम अनचीन्हे और अनचाहे पदार्थ मिलते हैं, नदी मुड़ नही सकती, घाट उसके साथ चल नही सकता। ठीक इसी तरह हमारी सांसारिक विवशताएँ, दुविधाएं होती हैं, हम घर छोड़ कर नदी बन घाट घाट बहते रहते हैं, कस्तूरी की तलाश में। किस घाट किसी के अंतर्मन की सुगंध आकर्षित कर ले, पता नही होता है। पर एक तलाश में हर कोई घूम रहा है। उसी तलाश को आधार बनाते हुए रचनाएं आपको इस काव्य संग्रह में पढने को मिलेंगी। उम्र का एक दौर कच्चेपन का होता है, उन कच्चे भावों को इस पुस्तक में सहेजने का प्रयास है।
मुख्यतः अतुकांत, मुक्तक, गीत और गजल के रूप में आपके समक्ष रचनाएं प्रस्तुत हैं। एक विशेष बात यह है कि पारम्परिक मीटर या छंद के हिसाब से शायद रचना खरी न उतरे पर भाव आपसे जरूर जुड़ेगा ऐसा मेरा विश्वास है।

डॉ पवन विजय

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

स्त्री तुम केवल योनि हो


कंगना राणावत और दिलजीत दोसांझ के मध्य संवाद का एक समाजशास्त्रीय पहलू है और वह है  उसमें स्त्री पुरुष की आइडेंटिटी से जुड़े मुद्दे। बातचीत कुछ भी हुयी हो पर कंगना को आखिरकार  लैंगिक  दांव से ही पटका जा सका। ट्विटर पर चले ट्रेंड ‘दिलजीत कंगना को पेल रहा है’ ने इस बात को और भी पक्का पोढ़ा किया कि स्त्री को ‘पेल’ कर ही उसे नीचे गिराया जा सकता है संवाद के माध्यम से नही। ठीक यही स्थिति सपना चौधरी को भी लेकर हुयी थी जब उन्होंने कांग्रेस/भाजपा  ज्वाइन करने की बात की थी तब आई टी सेल से लेकर तमाम हरावल दस्ते उनको ‘पेलने’ सामूहिक रूप से टूट पड़े थे।

घर, बाहर, दफ्तर, जगह कोई भी हो स्त्री को ‘माल’ के रूप में ही देखा जाना एक ‘नेचुरल’ सी बात स्थापित होती जा रही है। अगर आप इस माल फैक्ट से हट कर बात करते हैं तो समूह में आपकी एंट्री ‘फ़क बैकवर्ड’ कह कर   कर दी जायेगी। मजेदार बात यह है कि स्त्रियाँ भी इस ‘माल आइडेंटिटी’ को स्वीकार करना एक प्रोग्रेसिव बात मानने लगी हैं और बहुत सी संख्या में ऐसी महिलायें अपने को केवल  योनि के रूप में  समझे जाने को   गौरव के रूप में लेती है बस योनि की जगह ‘सेक्सी’ शब्द  प्रयुक्त होता है।

किसी शिक्षिका , अभिनेत्री, नृत्यांगना, कवयित्री या किसी भी रूप में कार्यरत महिला की पहचान केवल महिला के रूप में ही  मानी जाती है। कार्य की अपेक्षा शरीर की चर्चा समाज में आम है। इसका एक और परिणाम होता है, शरीर के आधार पर  महिलाओं में ही विभेदीकरण बनने लगता है। कुछ लोगों को यह बात ठीक लग सकती है  कि शारीरक सौष्ठव या आकर्षण का एक स्थान है पर शरीर के आधार पर ही स्तरीकरण करना मानवीय उद्विकास पर घोर प्रश्न चिन्ह लगाता है। गली कूचे खुलते ब्यूटी पार्लर और जिम अपने शरीर के प्रति  असंतुष्टता के प्रतीक हैं कि आपकी खाल अच्छी नही आपके गाल अच्छे नही आपके शरीर का विन्यास ठीक नही है। एक अनचाहा दबाव एक स्त्री पर यह होता है कि वह मानकों के अनुरूप अपने शरीर को बनाए रखे नही तो ग्रुप से आउट होने का खतरा बना रहेगा।

सेक्सी दिखने की चाह अपने को केवल योनि/ ‘माल’ में  बदलना है। समाज  को योनि और  व्यक्ति में अंतर की परिभाषा को स्पष्ट करना होगा नही तो वह यह स्वीकार कर ले कि मनुष्य अभी भी बर्बर युग में रह रहा है सभ्यता का ‘स’ भी उसे छू नही पाया है।  

    


शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

फरवरी नोट्स ऐसे ही एक बहाव की कहानी है, जो बुरी हो कर भी मीठी लगती है

 बहुत कम किताबें ऐसी होती हैं जो एक बैठक में ही समाप्त हो जाती हैं। मतलब एक बार पढ़ना शुरू किये तो आप बिना खत्म किये उठ नहीं सकते। फरवरी नोट्स एक ऐसा ही उपन्यास है।

प्रेम सृष्टि की सबसे मीठी अनुभूति का नाम है। कातिक के नए गुड़ की तरह, जेठ में पेंड़ पर पके पहले आम की तरह... यह व्यक्ति को किसी भी उम्र में छुए तो प्यारा ही लगता है। कभी कभी अपने बुरे स्वरूप में आ कर सामाजिक मर्यादा को तोड़ता है, तब भी मीठा ही लगता है। व्यक्ति समझता है कि गलत हो रहा है, पर रुक नहीं पाता। बहता जाता है... फरवरी नोट्स ऐसे ही एक बहाव की कहानी है, जो बुरी हो कर भी मीठी लगती है।कहते हैं फरवरी का महीना प्रेम का महीना होता है। सबके जीवन में कोई न कोई फरवरी ऐसी जरूर होती है जिसे याद कर के वह बुढ़ापे तक मुस्कुरा उठता है। फरवरी नोट्स ऐसी ही कुछ यादों का संकलन है।
उपन्यास की कहानी है अपने अपने जीवन में खुश समर और आरती की, जो कॉलेज लाइफ की किसी फरवरी की यादों में बंध कर वर्षों बाद दुबारा मिलते हैं, और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर कुछ कदम साथ चलते हैं। यह साथ अच्छा हो न हो, मीठा अवश्य है। इतना मीठा, कि पाठक का मन उस मिठास से भर जाता है।
हिन्दी में बहुत कम लेखक ऐसे हैं जो प्रेम लिखते समय वल्गर नहीं होते। काजल की कोठरी से बच के निकलना बड़ा कठिन होता है। डॉ पवन विजय इस मामले में अलग हैं। वे बेदाग निकल आये हैं। वे गलती लिखते समय भी गलती नहीं करते...
मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसी कहानियों का समर्थक नहीं, फिर भी मैंने फरवरी नोट्स बिना रुके एक बार में ही पढ़ी है। यह शायद हम सब के भीतर का दोहरापन है...
तो यदि आप लीक के हट कर कुछ अच्छा पढ़ना चाहते हैं, तो फरवरी नोट्स अवश्य पढ़ें। मेरा दावा है, आप निराश नहीं होंगे।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

फरवरी नोट्स : प्रेम गली अति सांकरी

 फरवरी नोट्स (प्रेम गली अति सांकरी...)

फरवरी का महीना प्रेम का प्यार का महीना जाना जाता है , प्रेम का महीना और पूरे साल के महीनों में सबसे कम दिन वाला , शायद प्रेम से जुड़ा है इसलिए कुछ छूटा हुआ सा लगता है यह पूरे साल में।
इसी महीने के नाम पर डॉ पवन विजय जी का लिखे उपन्यास "#फरवरीनोट्स " ने अपनी तरफ ध्यान आकर्षित किया ,यह जानने की उत्सुकता हुई कि जिस सरल सहज ,स्वभाव वाले "व्यक्तित्व "से मैं मिली हूँ और जिन्होंने मुझे "अमृता प्रीतम "से जुड़े उपन्यास को लिखने के लिये प्रेरित किया था ,आखिर उन्होंने इस प्रेम विषय को कैसे अपने इस "फरवरी नोट्स उपन्यास "में शब्दों में ढाला है ,बस मेरी यही पढ़ने की उत्सुकता ने पिछले बीते सप्ताह में अमेज़ॉन से ऑर्डर करवा ही दिया। वैसे भी इस उपन्यास के बारे में इतने अच्छे सकरात्मक पोस्ट पढ़ रही थी कि लगा यह तो अब पढ़ना ही चाहिए ।
"फरवरी नोट्स "मेरे पास सर्दी की हल्की सी खुनक लिए अक्टूबर के महीने की शुरुआत में मेरे हाथ मे आयी और एक ही सिटिंग में पढ़ भी ली । बहुत समय के बाद यह एक ऐसा उपन्यास पढ़ा जो दोपहर के खाने के बाद शुरू हुआ और शाम ढलते ढलते की चाय के साथ समाप्त किया ।
किसी भी उपन्यास को इतनी जल्दी पढ़ने की बेताबी तभी रहती है जब आप खुद को उस से जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। उस उपन्यास की हर घटना आपको लगता है कि आपके साथ भी कभी न कभी हो कर गुजरी है । पढ़ते हुए मुझे लगा कि समर तो "मे आई फ्रेंडशिप विद यू ,"की घटना भूल ही चुका था पर आरती उस को नहीं भूली थी , उसको वह अपनी लगातार बातचीत से और अपने पन्द्रह साल के इंतज़ार की बेताबी से याद दिलाती है । यह सब मुझे बिल्कुल ऐसी ही लगी जैसे मैंने अपनी लिखी एक लघुकथा ,"#उसनेकहाथा " में अपने ही आसपास घटे एक वाक्यात के रूप में लिखी थी । और इसमें बताई जगह भी मेरे आसपास की ही हैं, जंगपुरा मेट्रो , हुमायूँ टॉम्ब ,आदि ।
प्रेम की स्थिति सच में बहुत विचित्र होती है। मन की अनन्त गहराई से प्यार करने पर भी यदि निराशा हाथ लगे तो ना जिया जाता है ना मरा जैसे कोई रेगिस्तान की गरम रेत पर चल रहा है, जहाँ चलते चलते पैर जल रहे हैं पर चलना पड़ता है बस एक आशा मृगतृष्णा सी दिल में कही जागी रहती है ।
उम्र के उस पड़ाव पर जब ज़िन्दगी दूसरे ट्रैक पर चल चुकी हो उसको फिर से वापस उसी पुराने रास्ते पर लाना मुमकिन नहीं है । उपन्यास में लिखी यह पंक्तियाँ इसकी सहमति भी देती हैं " हम लोगों का आकाश भीगा है और धरती सूखी है । जो पुराना लिखा है ,उसे कितना भी मिटाना चाहे,नहीं मिटा सकते क्योंकि यह मिटाना दोनों के दिल गवारा नहीं कर सकते। हम क्रूर और स्वार्थी नहीं। " और यही तो जीवन का अटल सत्य है । पर आजकल के वक़्त में देखते सुनते घटनाओं को इस तरह से समझना मुश्किल भी है। क्योंकि इस तरह के प्रेम के लिए ठहराव और समझना जरूरी है ,पर आज के स्वार्थी वक़्त में यह सिर्फ पढ़े हुए किस्से सा ही लगता है ।
उपन्यास में लिखी कई पंक्तियाँ बहुत ही प्रभावशाली रूप से ज़िन्दगी से ,प्रेम से जुड़े शब्दों में पिरोई गयी हैं , इन्ही में मेरी एक पंसदीदा जुड़ी पंक्तियाँ भी है कि आदमी औरत के साथ सोना तो सीख गया पर जागना नहीं सीख पाया पर तुम्हें तो किसी औरत के साथ जागना भी आ गया " अंत भी इसका सही किया है , कुछ यादें सिर्फ ज़िन्दगी में फरवरी के उन दो दिन सी बन कर रहें तो ही ज़िन्दगी चल पाती है । क्योंकि प्रेम है एक एकांत ,जो सिर्फ मन के ,दिल के एहसास में ही जीया जा सकता है ,और यही प्रेम जब नाम बनता है तो इसका एकांत खत्म हो जाता है ।
इस वक़्त जब हम सब कोरोना काल के जद्दो जहद से गुज़र रहें हैं ,ऐसे वक्त में यह उपन्यास पढ़ना एक सुखद ब्यार सा लगता है । नहीं पढ़ा है अब तक तो जरूर पढ़ें ।#amazon पर यह उपलब्ध है ।


...रंजू भाटिया
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मंगलवार, 25 अगस्त 2020

अंतस में दर्ज मधुमास के अनावरण का नाम है 'फरवरी नोट्स'


बारिशें लौटकर आती हैं, पतझड़ और वसंत लौटकर आता है, ठीक इसी तरह पहला प्यार भी जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर अवश्य लौटकर आता है, चाहे वह स्मृतियों के रूप में या सदेह हो। मन के श्याम पट्ट पर स्नेह के श्वेत अक्षरों में लिखे गये शब्द समय के डस्टर से मिटाए नही मिटते। जीवन की आपा धापी में जब वे अक्षर हमारी देहरी पर आकर खड़े होते हैं तो लगता है कि एक बार फिर फरवरी ने दिल के द्वार खटखटा दिए हों।

                         


मधुमास के नुपुर खनखनाने लगते हैं. घर और दफ्तर का शोर अतीत की मधुर ध्वनियों में विलीन होने लगता है उस पार जाने के लिए वर्तमान की खाई के ऊपर पुल बनने लगता हैं। फरवरी हर साल आती है लेकिन जिस पर हमने कोई हर्फ़ लिखा है वह फरवरी जीवन में एक ही बार आती है। फिर से उसके वासंती पन्नों पर कुछ नोट्स लिखने की कोशिश होती है पर जैसे लिखे को मिटाना मुश्किल है वैसे ही धुंधले हो चुके अक्षरों के ऊपर लिखना भी मुश्किल होता है। फरवरी नोट्सइन्ही मुश्किलों, नेह छोह के संबंधों और मन की छटपटाहटों की कहानी समेटे हुए है। यह कहानी मेरी है, यह कहानी आपकी है, यह कहानी हर उस व्यक्ति की है जिसके हृदय में स्पंदन है और स्मृतियों में कोई धुंधली सी याद जो एक निश्छल मुस्कुराहट का कारण बन जाती है।

प्रकाशक : हर्फ़ पब्लिकेशन 

मूल्य २०० रूपये अमेज़न लिंक 

 
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