मैं पत्थर हूँ
न देखता हूँ न सुनता हूँ
न ही कोई संवेदना महसूस करता हूँ
किसी के दुःख निवारण की बात तो दूर
मैं इतना असहाय हूँ कि पड़ा हुआ हूँ सदियों से एक ही जगह बारहों मौसम
सोचो मुझे पूजने वालों
अगर मैं कहने सुनने समझने और करने वाला होता तो पत्थर क्यों होता
इंसान क्यों न होता
जिस दिन मुझे बोलना आ गया
उसी दिन मंदिर से बाहर फेंक दिया जाऊंगा और देवत्व से भी च्युत कर दिया जाऊंगा
क्योंकि बोलते बोलते मुझे चिल्लाना होगा और चिल्लाते चिल्लाते हांफने लगूंगा
पसीने से तरबतर
लेकिन देवताओ को तो पसीना आता ही नही
मेरी देह से पसीना बहते देख लोग समझ जाएंगे कि
यह देवता नही कोई इंसान है
और लात मारकर निकाल देंगे अपने अपने घर के पवित्र कोनों से
बोलने वाले माँ बाप की तरह
सुनो मुझे पूजने वालों
मैं पूजित होने के लिए कब तक अभिशप्त रहूंगा
मुझे मुक्त होना है
इस गूंगे बहरे लूले लंगड़े और निहायत ही लिजलिजे और निर्जीव देवत्व से
मैं सांस लेना चाहता हूँ
हँसना चाहता हूँ रोना चाहता हूँ
मुझे पूजने वालों
मैं तुम जैसा होना चाहता हूँ