वीराना हो भला कितना ठिकाना ढूंढ लेता है,
ग़मों को गुनगुनाने का तराना ढूंढ लेता है।
कवायद खूब होती है मुझे मायूस करने की,
मगर दिल मुस्कुराने का बहाना ढूंढ लेता है।
चटखते जेठ के दिन हो या हो बरसात सावन की,
सुलगती चांदनी में फिर महकती रात चंदन सी,
हज़ारों मील लम्बे रास्ते फूलों के कांटों के,
सफर कोई हो मौसम आशिकाना ढूंढ लेता है।
कभी पत्थर सा रहता है कभी पानी सा बहता है,
कभी कुछ बोल देता है कभी खामोश रहता है,
मुहब्बत में अदावत में तन्हाई और महफ़िल में,
तरन्नुम में ग़ज़ल इक शायराना ढूंढ लेता है।