शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

बलात्कार

यह बात सिर्फ लखनऊ या दिल्ली में हुये बलात्कार की नहीं, कही भी बलात्कार हो उसमें समाज के हर जिम्मेदार तबके/व्यक्ति की सहभागिता रहती है। भारत में भ्रस्टाचार और बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता।  भ्रस्टाचार को चतुराई का नाम देकर उसे महिमामंडित किया जाता है उसी तरह बलात्कार को मर्दानगी साबित करने वाला कृत्य बताकर उसे ताकत और इज्जत के जाल में फांस कर रफा दफा करने का प्रयास किया जाता है। चाहे मीडिया में चल रहे ट्रेंड्स/विज्ञापन/फिल्म्स/समाचार हों या समाज एवं राज्य के चलन, हर जगह एक विशेष मानसिकता काम कर रही जो अंततः भ्रस्टाचार या बलात्कार के रूप में प्रस्फुटित होती है। 

बलात्कार जैसे अपराध के लिए माता पिता और शिक्षक ये तीन सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।  साथ ही पूरक विषय के रूप में राज्य और सम्बंधित एजेंसियां आती हैं। कठोर कानूनों का अभाव, लेट लतीफ़ निर्णय, कानूनी दांवपेच, पीड़िता की समुचित सुरक्षा का अभाव इत्यादि बातें अपराधी के मनोबल को बढ़ाती हैं। समाज में रहने वाला वकील जो किसी बेटी का बाप भी हो सकता है अगर तय करे की वह बलात्कारी का केस नहीं लड़ेगा, समाज तय करे की वह बलात्कारी का बहिष्कार करेगा, माँ बाप भाई बहन बीवी सभी सामूहिक रूप से ऐसे व्यक्तियों से एक झटके में सम्बन्ध तोड़ ले, तभी जाकर इस अपराध पर लगाम लग पायेगा।  बाकी उत्तेजक माहौल से भी निपटा जाय। कामुकता पैदा करने वाले माहौल में कोई भी अनैतिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित हो सकता है।  जरूरत है की ऐसे लोगों, ऐसी प्रक्रियाओं की लानत मलानत हो।  

अंत में एक बात कहना चाहूँगा।  पेट की आग सारे ज्वलंत मामलो से ज्यादा ज्वलनशील है। रोज की रोटी की हुज्जत में लगे लोगों के पास रोने के लिये ज्यादा वक्त नहीं होता। रोटी के इंतजाम के लिए बड़े से बड़े दुःख पर पत्थर धर कर जाते हुए लोगों को आप जिंदादिल कहिये जज्बे को सलाम करिये या संवेदनहीन कर कर गरियाइये, यह आप का दृष्टिकोण है। निर्भया से पहले वाले मसले बिला गए थे, निर्भया का भी बिला गया और निर्भया के बाद वाले भी बिला जाएंगे। जनांदोलन को बपौती और निजी हितों के लिए इस्तेमाल करने वाले जनांदोलन का  सामूहिक बलात्कार करते हैं। अपना अपना घर देखिये अपने अपने बच्चे देखिये। साथ ही साथ अपने को देखिये। स्व का अवलोकन उम्र भर चलने वाला आंदोलन है और इसकी कमान सिर्फ और सिर्फ आपके हाथों में है।