शनिवार, 19 दिसंबर 2020

स्त्री तुम केवल योनि हो


कंगना राणावत और दिलजीत दोसांझ के मध्य संवाद का एक समाजशास्त्रीय पहलू है और वह है  उसमें स्त्री पुरुष की आइडेंटिटी से जुड़े मुद्दे। बातचीत कुछ भी हुयी हो पर कंगना को आखिरकार  लैंगिक  दांव से ही पटका जा सका। ट्विटर पर चले ट्रेंड ‘दिलजीत कंगना को पेल रहा है’ ने इस बात को और भी पक्का पोढ़ा किया कि स्त्री को ‘पेल’ कर ही उसे नीचे गिराया जा सकता है संवाद के माध्यम से नही। ठीक यही स्थिति सपना चौधरी को भी लेकर हुयी थी जब उन्होंने कांग्रेस/भाजपा  ज्वाइन करने की बात की थी तब आई टी सेल से लेकर तमाम हरावल दस्ते उनको ‘पेलने’ सामूहिक रूप से टूट पड़े थे।

घर, बाहर, दफ्तर, जगह कोई भी हो स्त्री को ‘माल’ के रूप में ही देखा जाना एक ‘नेचुरल’ सी बात स्थापित होती जा रही है। अगर आप इस माल फैक्ट से हट कर बात करते हैं तो समूह में आपकी एंट्री ‘फ़क बैकवर्ड’ कह कर   कर दी जायेगी। मजेदार बात यह है कि स्त्रियाँ भी इस ‘माल आइडेंटिटी’ को स्वीकार करना एक प्रोग्रेसिव बात मानने लगी हैं और बहुत सी संख्या में ऐसी महिलायें अपने को केवल  योनि के रूप में  समझे जाने को   गौरव के रूप में लेती है बस योनि की जगह ‘सेक्सी’ शब्द  प्रयुक्त होता है।

किसी शिक्षिका , अभिनेत्री, नृत्यांगना, कवयित्री या किसी भी रूप में कार्यरत महिला की पहचान केवल महिला के रूप में ही  मानी जाती है। कार्य की अपेक्षा शरीर की चर्चा समाज में आम है। इसका एक और परिणाम होता है, शरीर के आधार पर  महिलाओं में ही विभेदीकरण बनने लगता है। कुछ लोगों को यह बात ठीक लग सकती है  कि शारीरक सौष्ठव या आकर्षण का एक स्थान है पर शरीर के आधार पर ही स्तरीकरण करना मानवीय उद्विकास पर घोर प्रश्न चिन्ह लगाता है। गली कूचे खुलते ब्यूटी पार्लर और जिम अपने शरीर के प्रति  असंतुष्टता के प्रतीक हैं कि आपकी खाल अच्छी नही आपके गाल अच्छे नही आपके शरीर का विन्यास ठीक नही है। एक अनचाहा दबाव एक स्त्री पर यह होता है कि वह मानकों के अनुरूप अपने शरीर को बनाए रखे नही तो ग्रुप से आउट होने का खतरा बना रहेगा।

सेक्सी दिखने की चाह अपने को केवल योनि/ ‘माल’ में  बदलना है। समाज  को योनि और  व्यक्ति में अंतर की परिभाषा को स्पष्ट करना होगा नही तो वह यह स्वीकार कर ले कि मनुष्य अभी भी बर्बर युग में रह रहा है सभ्यता का ‘स’ भी उसे छू नही पाया है।