मैंने अपने पत्रकारीय जीवन की 25 वर्षों की यात्रा
में देश में कई आम चुनाव और राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव देखे ---समूचा देश
घूमा --- चारों दिशाओं में --- लेकिन कहीं भी मुझे किसी भी चुनावी सभा में कोई
नेता इंग्लिश में वोट मांगता नहीं दिखा --- केरल में भी नहीं और तमिलनाडु में भी
नहीं --भारत में चुनाव की भाषा या तो हिंदी है या फिर राज्यों की अपनी अपनी भाषाएं
---यानि वोट अपनी ज़ुबान में ही मांगे जाते हैं। लेकिन मुश्किल तब होती है जब
चुनाव की भाषा अपनी जुबां होती है और सरकार की भाषा इंग्लिश हो जाती है। देश का
राजकाज उस भाषा में ही होना चाहिए जो भाषा अधिकाँश आम जनता समझ और जान सके। हाँ , सम्पर्क भाषा के
रूप में इंग्लिश भी रहे -- लेकिन वह प्रथम भाषा नहीं हो सकती इस देश की। बैसे भी
यह कुछ अनैतिक सा ही लगता है की आप वोट एक भाषा में मांगते हैं और सरकार दूसरी
भाषा में चलाते हैं। यह आम जन के साथ छल जैसा ही है। अपने घर के जेवर और खेत बेंच
कर ननकू जो मुकदमा लड़ता है , उसका फैसला आने पर उसे अपने वकील से पूछना पड़ता है कि वकील बाबू , हम जीते कि हारे।
ना बहस की भाषा उसकी और ना फैसले की। इलाज़ में भी यही ---- जो डॉक्टर बता दे बही
रोग और बही इलाज़ मानना होगा ननकू को --- क्यूंकि यंहा भी इलाज़ और जांच की जो भाषा
है , वह ननकू की भाषा नहीं है। ऐसे असंख्य उदाहरण दिए जा सकते हैं जो
देश के लोक जीवन में विसंगतियां पैदा कर रहे हैं। ------- यह विसंगतियां देश की
प्रगति को भी वाधित कर रही हैं। भाषा माध्यम है , और माध्यम अपना ना हो तो अवरोध
स्वाभाविक हो जाता है। एक बात उन सभी से भी जो हिंदी को दुलार करते हैं। हिंदी को
लेकर हमें अहसास-ए -कमतरी से उबरना होगा। अपनी माँ को लेकर संकोच या शर्मिंदगी
क्यों और कैसी ??------- आपको अच्छी हिंदी आती है तो उसी में बोलिए --- अशुद्ध इंग्लिश का
मोह क्यों पालें ?कुछ खरीदने जाएँ तो हिंदी में ही संवाद करें --- बच्चे स्कूल में
इंग्लिश सीखें , अच्छी बात है ,
पर आप जब बच्चे के अध्यापक से मिलें
तो हिंदी में ही बात करें -- बच्चे की प्रगति हिंदी में पूछी जा सकती है।
कोशिश करिये डॉक्टर और वकील से भी हिंदी में ही बात हो। यकीन मानिए , आप हिंदी में
बोलेगे तो जिन्हे हिंदी नहीं आती वो डॉक्टर और वकील भी हिंदी सीखने को मजबूर हो
जाएंगे ---- धंधे का मसला जो है। जो व्यापार कर रहे हैं भारत में , उन्हें भारत की
भाषाएँ सीखनी ही होंगी अगर हम चाह लें तो। जैसे अगर हम ब्रिटेन में कारोबार करना
चाहते हैं तो हमें इंग्लिश सीखनी ही होगी। इसलिए अगर हम कमर कस लें तो भरोसा रखिये
हर कारोबार करने वाला हिंदी में ही बोलेगा और लिखेगा। यही दबाब सरकारों पर भी
बनाया जा सकता है , शर्त बस यही है की हम और आप चाहलें। तो आइये , आज और अभी से शुरुआत
करें -------- किसी दूसरी भाषा का विरोध किये बिना हिंदी के लिए आग्रह कीजिए ।
बहुत समय पहले शैली की एक कविता पढी थी, 'ओड टू द वेस्टर्न विंड'। भाव यह था कि स्वय को तप्त रखकर यह पवन बारिश का कारण बन जाता है। तीव्र वेग होने के कारण जमीन पर छितरे झाड झंख़ाडो को उडा ले जाता है। इसकी दिशा हमेशा पूर्व की ओर है। वह कविता मन मे बस गयी। बरसो बरस बाद मेरे द्वारा बनाया गया यह ब्लाग उसी भाव का स्फुटन है।
समाजशास्त्रीय मंच: The Socological Forum
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