इस
समय हिन्दी दिवस या फिर हिन्दी से सम्बन्धित कोई भी सप्ताह, पखवाड़ा, माह
आदि भी नहीं मनाया जा रहा है फिर भी हम हिन्दी की बात करने आ गये
हैं। दरअसल देखने में आ रहा है कि विगत कुछ वर्षों से हिन्दी को लेकर हिन्दी
भाषियों और अहिन्दी भाषियों के द्वारा हिन्दी विकास के लिए बड़े-बड़े
स्तर
पर प्रचार-प्रसार,
बड़े-बड़े
कार्य किये जाते रहे हैं। इन्हीं कार्यों और
इनके प्रयासों से जो लोग जागरूक हुए हैं वे तो सही रूप में कार्य कर रहे हैं
और जो बस ये दिखाने के लिए कि वे भी हिन्दी विकास हेतु कार्य कर रहे हैं, हिन्दी
की टाँग तोड़ने का काम कर रहे हैं। आपने देखा होगा कि इस समय हिन्दी भाषा
में कार्य करने वाला व्यक्ति (जो हिन्दी में पढ़ा रहा है या जो ये
साबित करना चाहता है कि वो सच्चा हिन्दी सेवी है) अपने
कार्यों के दौरान अंग्रेजी के कुछ शब्दों को भी हिन्दी में अपने अनुसार
अनुवाद करके उनका प्रयोग कर रहा है। यही अतिप्रेम की निशानी हिन्दी को
लाभ पहुँचाने के स्थान पर हानि पहुँचा रही है।
हिन्दी
की पत्रिकाओं और पत्रों पर गौर करिए, मोबाइल
के स्थान पर विविध शब्दों का प्रयोग हो
रहा है। आखिर मोबाइल इस समय जन-जन
की पहुँच में है और हिन्दी सेवी
या फिर हिन्दी की पत्र-पत्रिकाएँ
होने के कारण सम्पर्क में मोबाइल लिख
कर अंग्रेजी कैसे लिख दें? इसका निवारण करते हुए लोगों ने मोबाइल
को ‘चलितवार्ता’, ‘चलभाष’, ‘दूरध्वनि’, ‘चलध्वनि’ का
नाम देकर स्थापित करना शुरू कर दिया है। अच्छा है कि अंग्रेजी के स्थान पर
हिन्दी का प्रयोग हो पर यह तो नहीं
कि जिसका जो मन हुआ वही लिखने लगे। क्या वास्तव में मोबाइल के हिन्दी अर्थ
यही सब होंगे? एक मिनट को विचार करें कि क्या
इन शब्दों का हिन्दी में अनुवाद किया जाये तो क्या इनका अर्थ मोबाइल ही निकलेगा?
इसी
तरह से हिन्दी की कविता में हास्य का पुट पैदा करना है तो हिन्दी को अतिक्लिष्ट
रूप में प्रस्तुत कर दो, हास्य उत्पन्न हो जायेगा। इन कविताओं में, हास्य
का पुट देने के लिए साइकिल को ‘द्विचक्रवाहिनी’, ट्रेन को ‘लौहपथगामिनी’ के
नाम से परिभाषित किया जाता है। क्या वास्तव में इन दोनों शब्दों के यही हिन्दी
अनुवाद होंगे? (ऐसे बहुत से शब्द हैं जो अंगेरजी के हैं
और उनका हिन्दी रूपान्तरण हास्य के लिए क्लिष्ट रूप में किया जाता है।)
हिन्दी
भाषा के विकास का दौर चल रहा है या नहीं ये तो नीति-नियंता
ही जानते होगे पर ये तो तय बात है कि अंगेजी को देखकर हिन्दी
अनुवाद
से हिन्दी का विकास नहीं होगा। सिर्फ हिन्दी में शब्दों के बोलने के लिए
अंगेजी शब्दों का हिन्दी अनुवाद सही नहीं है। यदि किया ही जाये तो इसको
व्यंग्य रूप में नहीं सहज स्वीकार्य रूप में प्रयोग किया जाये। हिन्दी भाषा
का सरलीकरण किया जाये, सहजीकरण किया जाये ताकि हिन्दी वाकई जन-जन
की भाषा
बन सके। कवि सम्मेलनों या हँसी, चुटकुलों
के लिए प्रयोग न हो सके। क्या
किसी ग्रामीण या शहरी ने ‘लालटेन’ का
कोई हिन्दी अनुवाद खोजने की कोशिश की है?
हिन्दी भाषियों
का भी हिन्दी का गलत उच्चारण करना, गलत
तरह से लिखना-बोलना
हमें हैरत
में डालता है। इस लेख के द्वारा हमारा उद्देश्य कदापि हिन्दी सिखाना नहीं
है न ही यह समझाना है कि सही हिन्दी क्या है, कैसे
बोली-लिखी
जाये। बस
थोड़ा सा प्रयास यह दिखाने का है
कि ‘हम
हिन्दीभाषी होने का भरते हैं दम, और
करते हैं हिन्दी को ही बेदम।’ कुछ छोटे-छोटे
से उदाहरण आपके सामने हैं जो अपने आप बतायेंगे कि हम कितना सही प्रयोग करते हैं
हिन्दी का बोलने और लिखने में।
बहुत
से लोग ‘अनेक’ शब्द
को भी बहुवचन बनाकर ‘अनेकों’ लिख
देते हैं। यह गलत है, ‘अनेक’ तो
खुद में बहुवचन है।
लिखने
में ‘आशीर्वाद’ को
ज्यादातर ‘आर्शीवाद’ लिखने
की गलती की जाती है। ठीक इसी तरह की गलती ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ को ‘अर्न्तराष्ट्रीय’ लिखकर
की जाती है।
‘संन्यासी’ शब्द
को ‘सन्यासी’ तथा ‘उज्ज्वल’ को ‘उज्जवल’ लिखने
की गलती बहुत देखने को मिलती है।
‘उपलक्ष’ तथा ‘उपलक्ष्य’ का
अर्थ अलग-अलग
है फिर
भी दोनों को अधिकतर एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है।
इसी
तरह योजक शब्द ‘और’, ‘तथा’, ‘एवं’, ‘व’ सीधे-सीधे और के ही
रूप में प्रयोग किये जाते हैं किन्तु यदि देखा जाये तो इनका प्रयोग अलग-अलग
तरह से किया जाता है।
हम अब तो
पत्र लिखना लगभग बन्द ही कर चुके हैं। जब लिखते थे और जो आज भी लिख रहे
हैं वे अपने पत्र में अपने से बड़ों को सम्बोधित करने में इस प्रकार की गलती
जरूर करते हैं। ‘पूज्य’ और ‘पूजनीय’ का
अन्तर नहीं कर पाते हैं। सम्बोधन
में ‘पूज्य’ अकेले
ही प्रयोग किया जाता है, ‘पूज्यनीय’ शब्द
गलत है। इसके स्थान पर ‘पूजनीय’ का
प्रयोग किया जाना चाहिए।
इस तरह
के और बहुत से शब्द हैं जो हम आमतौर पर गलत प्रयोग करते हैं। इसके अलावा
लिखने और बोलने में बहुत बार हम शब्दों के क्रम पर और उसके रूप पर भी ध्यान
नहीं देते हैं। गलत प्रयोग करते हैं किन्तु किसी के टोकने पर हिन्दी भाषी
होने का कुतर्क करते हैं और अपनी ही बात को सही साबित करने का प्रयास करते
रहते हैं।
आपने
देखा होगा कि हम आम बोलचाल के रूप में अधिकतर कहते दिखते हैं ‘‘पानी
का गिलास उठा देना’’ या फिर ‘‘पानी
की बोतल ला देना’’। सोचिए क्या वाकई ‘गिलास’ या ‘बोतल’ पानी
के हैं?
इसी
तरह हम कहते हैं ‘‘एक फूल की माला
देना’’।
क्या अर्थ हुआ इसका? ‘एक फूल’ की
माला?
लिखने-बोलने
की एक बहुत बड़ी गलती होती है जब हम लिखते-कहते
हैं ‘महिला
लेखिकायें’ या ‘महिला
लेखिका’। यह
गलती बड़े-बड़े
हिन्दी पुरोधाओं को करते देखी है। यदि ‘महिला
लेखिका’ है तो ‘पुरुष
लेखिका’ भी
कहीं होगी? अरे भाई ‘लेखिका’ तो
अपने आप में महिला होने का सबूत है।
शब्दों
के क्रम का गलत प्रयोग किस तरह हम करते हैं और पूरा-पूरा
अर्थ बदल देते हैं, इसका
एक उदाहरण देकर अपनी बात समाप्त करते हैं। एक शब्द है ‘केवल’ और
इसका गलत प्रयोग क्या-क्या
गुल खिला सकता है, देखिएगा।
‘केवल’ मैं
सवाल हल कर सकता हूँ। (इसका
अर्थ हुआ कि सवाल ‘मैं’ ही हल
कर सकता हूँ।)
मैं ‘केवल’ सवाल
हल कर सकता हूँ। (इसका
अर्थ हुआ कि मैं केवल ‘सवाल’ हल कर
सकता हूँ और कुछ हल नहीं कर सकता हूँ।)
‘मैं
सवाल ‘केवल’ हल कर
सकता हूँ। (इसका
अर्थ होगा कि मैं सवाल को केवल ‘हल’ कर
सकता हूँ, उसे
समझा नहीं सकता हूँ।)
ये कुछ उदाहरण
हैं इस बात को दिखाने के कि कैसे हम गलती कर रहे हैं और इन गलतियों पर भी ध्यान
नहीं दे रहे हैं। धीरे-धीरे
यही गलतियाँ
हमारे व्यवहार और लेखन को प्रभावित करतीं हैं तथा भाषा को भी विकृत
करतीं हैं। कुछ
वर्णों को हम भूलते जा रहे हैं और उसका कारण भी हमारी भाषा के प्रति उदासीनता है।
आप खुद सोचिए कि कैसे एक
छोटा सा दशमलव विशाल से विशाल संख्या को भी प्रभावित कर देता है। हम
गणित में दशमलव के प्रयोग के प्रति बड़े ही सजग रहते हैं तो फिर भाषा
के सुधार के लिए सजग क्यों नहीं रहते?
भाषा
हमारे विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, कल को
ऐसा न हो कि हम अपनी वैज्ञानिक भाषा के तमाम सारे
शब्दों, मात्राओं
का विलोपन करवा कर अर्थ का अनर्थ करवा दें। आज
सँभलें, अभी
सँभलें। चलिए यह न
सोचिएगा कि हम क्लास लेने लगे। हम तो हिन्दी के एक बहुत छोटे
से विद्यार्थी हैं। गलती हम भी करते हैं और सीखने का प्रयास करते हैं। आशा
है कि आप हमें भी हमारी गलती बतायेंगे।
1 टिप्पणी:
चलिए यह न सोचिएगा कि हम "क्लास" लेने लगे।
कर दी न आपने भी गलती क्लास लिखकर
.
इसी तरह वर्ष को भी गलत 'वर्षों' और उपर्युक्त को उपरोक्त
और भी कई गलती जिसे नज़रअंदाज कर देते हैं सभी लोग
सरकारी कार्यालयों में तो और भी बुरा हाल देखने को मिलता है
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति है
जरुरी हैं ऐसे लेख। ..
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