रविवार, 3 जुलाई 2016

बाज़ार में।

बिकने लगी है दुनिया अब तो बाज़ार में।
पैसे हैं जेब में तो आओ बाज़ार में।।

बदली हुई सूरत में हर शक्ल दिखेगी।
देखा नहीं जो अब तक देखो बाज़ार में।।

जो दिन के उजाले में हैं दिख रहे ख़ुदा।
खुलती हैं उनकी गलियाँ शब को बाज़ार में।।

वीरान गुलिस्ताँ में मरघट सी खा़मुशी।
भंवरों ने बेच डाला गुल को बाज़ार में।।

किस्मत तो देखिए कि बाज़ार का मालिक।
नीलाम हो रहा है अब वो बाज़ार में।।

घर जिनके अंधेरों में हर रोज़ हैं डूबे।
उनके ही दम उजालों! तुम हो बाज़ार में।।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारतीय सेना के दो महानायकों को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !