बहुत समय पहले शैली की एक कविता पढी थी, 'ओड टू द वेस्टर्न विंड'। भाव यह था कि स्वय को तप्त रखकर यह पवन बारिश का कारण बन जाता है। तीव्र वेग होने के कारण जमीन पर छितरे झाड झंख़ाडो को उडा ले जाता है। इसकी दिशा हमेशा पूर्व की ओर है। वह कविता मन मे बस गयी। बरसो बरस बाद मेरे द्वारा बनाया गया यह ब्लाग उसी भाव का स्फुटन है।
समाजशास्त्रीय मंच: The Socological Forum
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
सांझ ने उड़ेल दिया
सारा सिन्दूर
ढाक के फूलो में
पर,
रक्तिम आभा ओझल है
ओ सखी,
क्या तुमने बसंत को
आँचल से बाँध रखा है?
वाह! सुन्दर बिम्बों के माध्यम से शानदार प्रस्तुतिकरण्।
सांझ ने उड़ेल दिया
सारा सिन्दूर
ढाक के फूलो में
पर,
रक्तिम आभा ओझल है
ओ सखी,
क्या तुमने बसंत को
आँचल से बाँध रखा है?
....बहुत खूब! लाज़वाब अभिव्यक्ति..
सुन्दर रचना ,
बधाई ,
सादर
प्यार भरे आँचल में बसंत की खुसबू है
महक से जीवन भर गया
प्रकृत को प्रिय से मिलाने फिर से ,
प्रेम का उपहार लिए ऋतुराज आ गया
एक टिप्पणी भेजें