बहुत समय पहले शैली की एक कविता पढी थी, 'ओड टू द वेस्टर्न विंड'। भाव यह था कि स्वय को तप्त रखकर यह पवन बारिश का कारण बन जाता है। तीव्र वेग होने के कारण जमीन पर छितरे झाड झंख़ाडो को उडा ले जाता है। इसकी दिशा हमेशा पूर्व की ओर है। वह कविता मन मे बस गयी। बरसो बरस बाद मेरे द्वारा बनाया गया यह ब्लाग उसी भाव का स्फुटन है।
समाजशास्त्रीय मंच: The Socological Forum
बुधवार, 9 जून 2010
प्री-टेक्निक युग की खुदाई
नीम का पेड़
छोटे -छोटे शालिग्राम
कुए का ठंडा पानी
और पीपल की नरम छांह
सुबह का कलेवा
'अग्गा राजा दुग्गा दरोगा'
गन्ने का रस और दही
साथ में आलू की सलोनी
गेरू और चूने से
लिपे पुते घर में
आँगन और तुलसी
दरवाजे की देहरी
ताख में रखा दिया
उजास का पहरिया
बाबा की झोपड़ी
और मानस की पोथी
लौकी की बेले
छप्पर पर आँखमिचौनी खेले
आमो का झूरना
महुए का बीनना
अधपके गेहू की बाली का चूसना
बगल के बांसों की
बजती बांसुरी
खेत खलिहान में काम करते
बैल हमारे परिवार के
और पास में चरते गोरू बछेरू घर के
प्री-टेक्निक युग की खुदाई में
मिली ये सारी वस्तुए
जिनको मैंने खोया था
कई बरस पहले
कई बरस पहले...............
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6 टिप्पणियां:
bachpan ki yade kabhi-kabhi ham sabhi jite hai use kavita me utarne ke liye sadhuvad.
सच कहा...टेक्निकल युग में ये सब खो गया है.
bahut achhe se yad kiya hai aapne apne kal ko.
Dil ko chhune wali lines.......
Bahut Sundar................
ये रचना तो एसी है की पढ़ क़र मुझे भी आपने बचपन की यादे आने लगी मुझे तो बहुत अच्छा लगा
varcevanje v zlatu [url=http://www.nalozba.info]naložba v delnice[/url]
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