फरवरी नोट्स (प्रेम गली अति सांकरी...)
फरवरी का महीना प्रेम का प्यार का महीना जाना जाता है , प्रेम का महीना और पूरे साल के महीनों में सबसे कम दिन वाला , शायद प्रेम से जुड़ा है इसलिए कुछ छूटा हुआ सा लगता है यह पूरे साल में।
इसी महीने के नाम पर डॉ पवन विजय जी का लिखे उपन्यास "#फरवरीनोट्स " ने अपनी तरफ ध्यान आकर्षित किया ,यह जानने की उत्सुकता हुई कि जिस सरल सहज ,स्वभाव वाले "व्यक्तित्व "से मैं मिली हूँ और जिन्होंने मुझे "अमृता प्रीतम "से जुड़े उपन्यास को लिखने के लिये प्रेरित किया था ,आखिर उन्होंने इस प्रेम विषय को कैसे अपने इस "फरवरी नोट्स उपन्यास "में शब्दों में ढाला है ,बस मेरी यही पढ़ने की उत्सुकता ने पिछले बीते सप्ताह में अमेज़ॉन से ऑर्डर करवा ही दिया। वैसे भी इस उपन्यास के बारे में इतने अच्छे सकरात्मक पोस्ट पढ़ रही थी कि लगा यह तो अब पढ़ना ही चाहिए ।
"फरवरी नोट्स "मेरे पास सर्दी की हल्की सी खुनक लिए अक्टूबर के महीने की शुरुआत में मेरे हाथ मे आयी और एक ही सिटिंग में पढ़ भी ली । बहुत समय के बाद यह एक ऐसा उपन्यास पढ़ा जो दोपहर के खाने के बाद शुरू हुआ और शाम ढलते ढलते की चाय के साथ समाप्त किया ।
किसी भी उपन्यास को इतनी जल्दी पढ़ने की बेताबी तभी रहती है जब आप खुद को उस से जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। उस उपन्यास की हर घटना आपको लगता है कि आपके साथ भी कभी न कभी हो कर गुजरी है । पढ़ते हुए मुझे लगा कि समर तो "मे आई फ्रेंडशिप विद यू ,"की घटना भूल ही चुका था पर आरती उस को नहीं भूली थी , उसको वह अपनी लगातार बातचीत से और अपने पन्द्रह साल के इंतज़ार की बेताबी से याद दिलाती है । यह सब मुझे बिल्कुल ऐसी ही लगी जैसे मैंने अपनी लिखी एक लघुकथा ,"#उसनेकहाथा " में अपने ही आसपास घटे एक वाक्यात के रूप में लिखी थी । और इसमें बताई जगह भी मेरे आसपास की ही हैं, जंगपुरा मेट्रो , हुमायूँ टॉम्ब ,आदि ।
प्रेम की स्थिति सच में बहुत विचित्र होती है। मन की अनन्त गहराई से प्यार करने पर भी यदि निराशा हाथ लगे तो ना जिया जाता है ना मरा जैसे कोई रेगिस्तान की गरम रेत पर चल रहा है, जहाँ चलते चलते पैर जल रहे हैं पर चलना पड़ता है बस एक आशा मृगतृष्णा सी दिल में कही जागी रहती है ।
उम्र के उस पड़ाव पर जब ज़िन्दगी दूसरे ट्रैक पर चल चुकी हो उसको फिर से वापस उसी पुराने रास्ते पर लाना मुमकिन नहीं है । उपन्यास में लिखी यह पंक्तियाँ इसकी सहमति भी देती हैं " हम लोगों का आकाश भीगा है और धरती सूखी है । जो पुराना लिखा है ,उसे कितना भी मिटाना चाहे,नहीं मिटा सकते क्योंकि यह मिटाना दोनों के दिल गवारा नहीं कर सकते। हम क्रूर और स्वार्थी नहीं। " और यही तो जीवन का अटल सत्य है । पर आजकल के वक़्त में देखते सुनते घटनाओं को इस तरह से समझना मुश्किल भी है। क्योंकि इस तरह के प्रेम के लिए ठहराव और समझना जरूरी है ,पर आज के स्वार्थी वक़्त में यह सिर्फ पढ़े हुए किस्से सा ही लगता है ।
उपन्यास में लिखी कई पंक्तियाँ बहुत ही प्रभावशाली रूप से ज़िन्दगी से ,प्रेम से जुड़े शब्दों में पिरोई गयी हैं , इन्ही में मेरी एक पंसदीदा जुड़ी पंक्तियाँ भी है कि आदमी औरत के साथ सोना तो सीख गया पर जागना नहीं सीख पाया पर तुम्हें तो किसी औरत के साथ जागना भी आ गया " अंत भी इसका सही किया है , कुछ यादें सिर्फ ज़िन्दगी में फरवरी के उन दो दिन सी बन कर रहें तो ही ज़िन्दगी चल पाती है । क्योंकि प्रेम है एक एकांत ,जो सिर्फ मन के ,दिल के एहसास में ही जीया जा सकता है ,और यही प्रेम जब नाम बनता है तो इसका एकांत खत्म हो जाता है ।
इस वक़्त जब हम सब कोरोना काल के जद्दो जहद से गुज़र रहें हैं ,ऐसे वक्त में यह उपन्यास पढ़ना एक सुखद ब्यार सा लगता है । नहीं पढ़ा है अब तक तो जरूर पढ़ें ।#amazon पर यह उपलब्ध है ।
...रंजू भाटिया