बुधवार, 8 अप्रैल 2020

को नही जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।

हनुमान जी लोकनायक हैं। जन संकटमोचक हैं। जनांदोलन की शक्ति हैं। महादेवी वर्मा का कथन है,' राम के कथाक्रमों को संगठित करने वाला मूल सूत्र हनुमान जी ही हैं जिनके बिना सीता राम के बीच समुद्र ही लहराता होता और रावण के प्रखर प्रताप के सम्मुख राम के शौर्य की दीप्ति मलिन हो जाती । राम और सीता को मिलाने वाले, सुग्रीव को राज्य दिलाना हो, विभीषण का दुख दारिद्र्य दूर करना हो, लक्ष्मण की जान बचानी हो, नागपाश से मुक्ति, अहिरावण से मुक्ति, अर्जुन की सहायता से लेकर गोस्वामी जी के माध्यम से त्रस्त तत्कालीन जनता में राम नाम की शक्ति भरने वाले बजरंग बली की महिमा का कोई पारावार नही है। लोक मानस के कण कण में बजरंग बली व्याप्त हैं।प्रत्येक ग्राम में चाहे कोई और देवालय हो या ना हो हनुमान जी का विग्रह अवश्य होगा। उनके लिए खुला आकाश ही मंदिर है। राम कथाे हनुमान जी के बिना पूर्ण नही है। जहां राम कथा होती है वहां हनुमान जी अवश्य उपस्थित रहते हैं। भगवान राम जब संपूर्ण प्रजा सहित बैकुंठ जा रहे थे तब हनुमान जी उनके साथ नहीं गए। राम से पृथ्वी पर रहकर राम कथा श्रवण का ही वरदान मांगा जो उन्हें दिया गया। इसलिए जहां भी रामकथा होती है वहां एक लाल कपड़ा बिछाकर पहले हनुमान जी का आवाहन किया जाता है और कथा की समाप्ति पर उनकी विदा। प्रारम्भ: कथा आरंभ होत है, सुनो वीर हनुमान राम लखन अरु जानकी सदा करें कल्याण विदा: कथा समापन होत है सुनो वीर हनुमान जो जहां से आयहू सो तह करें पयान युवा शक्ति जागरण बिना बजरंग पूजन के सम्भव ही नही। अखाड़े जहां युवा शक्ति तराशी जाती है वहां हनुमान की ध्वजा अवश्य होती है स्वयं गोस्वामी जी ने हनुमान जी के बारह मंदिर बनाए थे । जनसंस्कृति और सरलता हनुमान मंदिरों की प्रमुख विशेषता है। विग्रह न हो तो भी सिंदूर से रंगी एक पिंडी ही काफी है। लोक देवता के रूप में हनुमान जी की उपासना दुर्गा माता के साथ होती है। हनुमान जी पर गोस्वामी जी ने कुछ छोटी-छोटी अति प्रसिद्ध रचनाएं लिखी हैं जिन्हें विशेषज्ञ उनकी मान्यता देने में संकोच करते हैं उनका कहना है यह तुलसी के स्तर की नहीं जैसे कि हनुमान चालीसा और बजरंग बाण। निरक्षर लोगों को भी वह कंठस्थ है और भारतीय मनीषा में उसकी पंक्तियां मंत्रों का दर्जा प्राप्त है। बुद्धिजीवी लोग यह भूल जाते हैं कि गोस्वामी जी ने सिर्फ साहित्य की रचना नहीं की उन्होंने भारतीय चेतना को भी रचा उसके लिए इसी प्रकार के जन साहित्य की आवश्यकता थी । हम बात तो बहुत करते हैं जन साहित्य की परंतु हमने ऐसा क्या रचा जिसे जनता ने समग्र भाव से अपनाया, जैसे कि हनुमान चालीसा और बजरंग बाण जो शब्दों का रूपांतरण क्रियाओं में कर सकें । प्रत्येक महान संत लोक की चेतना जागृत करने के लिए सर्जन का प्रयास करता है और वह रचना अपने रचनाकार के नाम के बिना भी युगों युगों तक यात्रा करती है । स्वामी रामानंद की रची आरती है, 'आरति कीजे हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ' घर घर गाई जाती है कितने लोग जानते हैं? लोककल्याण में स्तरीकरण के ब्यूरोक्रेटिक मॉडल नही चलते। यहां भावना हर प्रकार के स्तरीकरण को अप्रासंगिक कर देता है। इसी भावना के आधार पर तुलसी का रामराज्य निर्मित है जिसे वह हनुमान जी के माध्यम से पाना चाहते हैं। जय बजरंग बली।

कोई टिप्पणी नहीं: