शनिवार, 25 अप्रैल 2020

पर तन का अनुराग प्रबल है

पानी को पानी से मिलना जीवन तो सांसों का छल है ।
मन कब का बैरागी होता  पर तन का अनुराग प्रबल है ।

युगों युगों  की एक कहानी 
तृष्णा मन की बहुत पुरानी 
प्राणों की है प्यास बुझाना,
लेकिन नए स्वाद भी पाना 

पतन हुआ था जिसको पाकर, मांगे वही स्वर्ग का फल है ।
 मन कब का बैरागी होता  पर तन का अनुराग प्रबल है।

स्वर्ण हिरण की अभिलाषा में
मोह की मारीचिक आशा में 
स्वर्ण मयी लंका मिलती है ,
यद्यपि मान रहित होती है 

अनुकरणीय उसी का पथ है, जो भटका जंगल जंगल है।
 मन कब का बैरागी होता  पर तन का अनुराग प्रबल है ।


 परिवर्तन आखिर सीमित है 
धरती की गति भी नियमित है 
किसी ठौर पर रुकना होगा,
मर्यादा पर झुकना होगा 

चलते जाने वालों सुन लो, थीरता ही जीवन संबल है।
 मन कब का बैरागी होता  पर तन का अनुराग प्रबल है ।


3 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
लाजवाब गीत..।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ...
बहुत ही सुन्दर गीत पवन जी ... आनंद अ अगया ...