नोटबंदी
को लेकर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह का देश में माहौल बनाया
जा रहा है वह विघटनकारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह के कड़े और
साहसिक फैसले लिए उससे पारम्परिक राजनीति बुरी तरह तिलमिलाई हुयी है। सब्सिडी और तुष्टिकरण के सहारे वोट बैंक को
साधने वाली पारंपरिक राजनीति को इस किस्म
के निर्णय रास नही आते है। नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सवार होकर सत्ता
में आये थे अतः भ्रष्टाचार के खिलाफ
नोटबंदी के रूप में कारगर कदम
उठाना कोई हैरत की बात नही थी।
भ्रष्टाचार , कालाधन , नकली
नोट, आतंकवादी गतिविधियों और मंहगाई को नियंत्रित के लिए ही नोटबंदी का कदम उठाया गया लेकिन भारत नोटबंदी करने वाला पहला देश नही है। अभी हाल के
वर्षों में देखें तो जिम्बाब्वे में 2015
में नोटबंदी की गयी। जब यूरोप यूनियन
बना तब उन्होंने यूरो नाम की नई मुद्रा
चलाई थी और सारे पुराने नोट बैंकों में जमा करवाए गये थे। भारत में पहली
बार वर्ष 1946 में नोटबंदी की गई थी। मोरार जी देसाई की सरकार द्वारा जनवरी 1978
में 1000, 5000 , और 10,000 के नोटों को बंद किया गया था। 2005 में मनमोहन सिंह की
सरकार ने भी 2005 से पहले के 500 के नोटों को बदलवा दिया था। छोटे सिक्कों जैसे 5, 10, 20,
25, 50 पैसों का प्रयोग नहीं करते हैं
उन्हें भी बंद किया गया था। लेकिन आठ नवम्बर 2016 को जिस तरह से 500 और 1000 नोटों को बंद किया गया वह
उपर्युक्त बातों से अलग था। 500 और 1000 के नोट भारतीय अर्थव्यवस्था के 86 प्रतिशत भाग में प्रचलित थे इसी वजह से इसका इतना बड़ा प्रभाव लोगों पर हुआ।
नोटबंदी
की सफलता असफलता को रिज़र्व बैंक में वापस आये नोटों से जोड़कर प्रचारित किया
जा रहा है। माना जा रहा है 16000 करोड़ रु बैंक में वापस नही आये, नोटबंदी के विरोधियों का मानना है कि नोटबंदी तभी सफल मानी जाती जब लगभग
तीन लाख करोड़ रूपये रिज़र्व बैंक में वापस
न आते। ऐसा क्यों हुआ इसे थोड़ा विस्तार
में जानने की कोशिश करते हैं। नोटबंदी के दौरान अनिल अम्बानी या कोई भी धन्नासेठ
लाइन में नही लगा बल्कि उसने अपने लोगों
के द्वारा नोट बदलवाए। नोटबंदी के दौरान लाखों
की संख्या में खाली पड़े बैंक खाते अचानक
भरने लगे । बहुतायत लोगों ने दूसरों के
पैसे अपने खाते में जमा किये। बड़े बड़े स्कूलों, बड़ी कंपनियों, उद्योगों के मालिकों द्वारा उनके कर्मचारियों के खाते में साल भर या
दो साल के वेतन के एवज में पैसे डलवाकर कालेधन को सफ़ेद करने का खेल खूब चला। यही
वजह रही कि किसी न किसी माध्यम से रिज़र्व बैंक के पास पैसे वापस आये । दरअसल जिन
लोगों को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के
लिए नोटबंदी की गयी थी उन्ही लोगों ने भ्रष्टाचार करके नोटबंदी को असफल
बनाने में अथक प्रयास किया।
हर व्यक्ति भ्रष्टाचार से खुद को पीड़ित बताता
है और सरकार को इसे न ख़त्म कर पाने के लिए दिन रात कोसता है किन्तु जब सरकार ने उसे ख़त्म करने का फैसला
लिया तो उन्होंने भ्रष्टाचारियों से मिलकर
सरकार की मूल मंशा पर पानी फेरने का काम किया । हालांकि इसके अलावा और भी अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू हैं जिसके बिना
इसका सही मूल्यांकन हो ही नही पायेगा। नोटबंदी के बाद
बैंकों में लगभग तीन लाख करोड़ रूपये अतिरक्त जमा हुए, 56 लाख नए कर दाता जुड़े। पहले से 24.7 प्रतिशत ज़्यादा टैक्स रिटर्न फ़ाइल हुई। सबसे ज्यादा
फायदा डिजिटल इंडिया अभियान को हुआ, आंकड़ों में देखें तो कार्ड से लेन देन 65 प्रतिशत तक बढ़ा और कैशलेस डिजिटल पेमेंट में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुयी । नोटबंदी के बाद सरकार ने
कालाधन रखने वालों को एक मौका दिया था। जिसके अनुसार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत
अपने धन का खुलासा कर टैक्स और पेनेल्टी
भरकर लोग अपना पैसा बचा सकते थे। इस प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 21000
लोगों ने 4900 करोड़ रुपए के कालाधन की घोषणा की। कालेधन का एक प्रमुख स्रोत शैल
कम्पनियां हैं । आमतौर पर ये कंपनियां एक मीडियम के माध्यम से काले धन को सफ़ेद
करने का काम करती हैं। इन कंपनियों में टैक्स को पूरी तरह से बचाने या कम
से कम रखने की व्यवस्था होती है। इसमें पूरे पैसे को खर्च के तौर पर दिखाया जाता है, जिससे टैक्स भी नहीं लगता है। नोटबंदी के बाद ऑपरेशन क्लीन मनी के तहत 18 लाख से ज़्यादा खाते जांच के दायरे
में लाये गये और 2.1 लाख शैल कंपनियों का
लाइसेंस रद्द कर दिया गया जिससे आर्थिक व्यवस्था के पुनर्शोधन में बड़ी मदद मिली।
नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर भी तगड़ी चोट पहुंची अब तक कुल जमा किये गये पैसों
में 4.73 लाख बैंक ट्रांजिक्शन संदिग्ध है और जांच के दायरे में हैं । तीन लाख रूपये से ऊपर के सभी जमाराशि की जांच चल रही है। 34 बड़ी सीए कंपनियों को
संदिग्ध घोषित किया गया । 460 बैंक कर्मी घोटाले करते पकड़े गए । 5800 ऐसी कंपनियां
जांच के दायरे में हैं जिन्होंने नोटबन्दी
के बाद रातों रात 4573 करोड़ रु अपने खातों में जमा कराए और फिर निकाल लिए । 25 लाख से ज़्यादा जमा करने वाले 1.16 लाख लोगों
को नोटिस दिया गया है । 5.56 लाख ऐसे लोग
चिन्हित किये गये हैं जिनकी जमा राशि
उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक थी। लगभग 33,028 करोड़ रूपये की अघोषित रकम को आयकर
विभाग ने पकड़ी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक़ बैंकिंग सिस्टम से बाहर मौजूद करंसी को अमान्य
करना ही नोटबंदी का एकमात्र लक्ष्य नहीं था। नोटबंदी का एक बड़ा उद्देश्य भारत को 'गैर कर अनुपालन'
समाज
से ‘कर अनुपालन’ में बदलना था। इसका लक्ष्य अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना और
कालेधन पर प्रहार भी था। जब कैश बैंक में जमा किया जाता है तो इसके स्वामित्व की
गुमनामी खत्म हो जाती है। जमा कैश के मालिकों की पहचान हो गई है इनकी जांच चल रही
है कि जमा की गई रकम उनकी आमदनी के मुताबिक है या नहीं। बैंकों में जमा कैश का
मतलब यह नहीं है कि सारा पैसा सफेद ही है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का भी
मानना है कि नोटबंदी का उद्देश्य बैंकों में पैसा जमा करना था। जिन 3 से 4 लाख करोड़ रुपयों के बारे में रिज़र्व
बैंक को कुछ पता ही नही था वह पैसे बैंकों
में वापस आए और टैक्स अथॉरिटी की जांच के दायरे में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि करंसी ब्लैक से वाइट में
नहीं आई होगी, लेकिन यह ग्रे में जरुर आ गई है। कैश ट्रांजैक्शन
में भी कमी आई है। गलत तरीके से कैश ट्रांजैक्शन को लेकर लोगों में डर बना है।
उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर
निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि देश सुधार की दिशा में बढ़ा है और लोगों
के व्यवहार प्रतिमानों में बदलाव आ रहे हैं। यह बात सही है नोटों को बदलना अपने आप में अत्यंत
कठिन काम तो था पर सरकार के पास नये नोट
छापने की चुनौती भी कम नही थी। नोटबंदी के दौरान और उसके बाद देश में अफरातफरी का माहौल न बने इस
बात को भी सुनिश्चित करना था। इस काम की जिम्मेदारी एकमात्र सरकार की ही नही थी
विपक्षी दलों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी किन्तु विपक्षी दलों ने जनता को गुमराह करने
उन्हें भड़काने के अलावा सरकार को कोई भी
सकारात्मक सहयोग नही दिया पर देश की जनता ने जिस धैर्य और समझदारी का परिचय दिया वह
इस बात का परिचायक है कि हर नागरिक के लिए देश सर्वोपरि है।
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