जो रचे थे स्वप्न सारे चित्र उनको तोड़ आया।
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
उम्र भर की वेदना श्वांसों में है
बांसुरी अपनी कथा किससे कहेगी
मोर पंखों ने समेटा चन्द्रमा को
वृंदावन में राधिका पागल फिरेगी
पूर्णिमा को युग युगांतर अमावस से जोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
फूल से छलनी हृदय की अकथ पीड़ा
रो पड़ा है सुन के जाता एक बादल
स्नेह की इक बूँद को दल में समेटे
ताल में कुम्हला गया धूप से भींगा कमल
पार जाती नाव की मैं पाल को मरोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
प्यास ही तैरेगी अधरों पर निरंतर
शाप से मुरझा गया जल आचमन का
यह प्रतीक्षा है प्रलय की रात तक
पायलें देंगी संदेशा आगमन का
जा रही सागर को गंगा फिर हिमालय मोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
उम्र भर की वेदना श्वांसों में है
बांसुरी अपनी कथा किससे कहेगी
मोर पंखों ने समेटा चन्द्रमा को
वृंदावन में राधिका पागल फिरेगी
पूर्णिमा को युग युगांतर अमावस से जोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
फूल से छलनी हृदय की अकथ पीड़ा
रो पड़ा है सुन के जाता एक बादल
स्नेह की इक बूँद को दल में समेटे
ताल में कुम्हला गया धूप से भींगा कमल
पार जाती नाव की मैं पाल को मरोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
प्यास ही तैरेगी अधरों पर निरंतर
शाप से मुरझा गया जल आचमन का
यह प्रतीक्षा है प्रलय की रात तक
पायलें देंगी संदेशा आगमन का
जा रही सागर को गंगा फिर हिमालय मोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
9 टिप्पणियां:
वाह वाह बेहद उम्दा रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया ...वाह ..!!
प्रभावी ... बेहतरीन शाब्दिक अलंकरण लिए रचना
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जो मन में घर कर जाता है वह कहीं भी जाओ पीछे-पीछे चला आता है
..बहुत सुन्दर
बेहतरीन रचना।
Umda Rachna...pls do visit my blog too.Need your valuable feedback
जो रचे थे स्वप्न सारे चित्र उनको तोड़ आया।
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
बेहद भावपूर्ण.रचना.रागिनी की लहरों सी .....
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