जो रचे थे स्वप्न सारे चित्र उनको तोड़ आया।
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
उम्र भर की वेदना श्वांसों में है
बांसुरी अपनी कथा किससे कहेगी
मोर पंखों ने समेटा चन्द्रमा को
वृंदावन में राधिका पागल फिरेगी
पूर्णिमा को युग युगांतर अमावस से जोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
फूल से छलनी हृदय की अकथ पीड़ा
रो पड़ा है सुन के जाता एक बादल
स्नेह की इक बूँद को दल में समेटे
ताल में कुम्हला गया धूप से भींगा कमल
पार जाती नाव की मैं पाल को मरोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
प्यास ही तैरेगी अधरों पर निरंतर
शाप से मुरझा गया जल आचमन का
यह प्रतीक्षा है प्रलय की रात तक
पायलें देंगी संदेशा आगमन का
जा रही सागर को गंगा फिर हिमालय मोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
उम्र भर की वेदना श्वांसों में है
बांसुरी अपनी कथा किससे कहेगी
मोर पंखों ने समेटा चन्द्रमा को
वृंदावन में राधिका पागल फिरेगी
पूर्णिमा को युग युगांतर अमावस से जोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
फूल से छलनी हृदय की अकथ पीड़ा
रो पड़ा है सुन के जाता एक बादल
स्नेह की इक बूँद को दल में समेटे
ताल में कुम्हला गया धूप से भींगा कमल
पार जाती नाव की मैं पाल को मरोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।
प्यास ही तैरेगी अधरों पर निरंतर
शाप से मुरझा गया जल आचमन का
यह प्रतीक्षा है प्रलय की रात तक
पायलें देंगी संदेशा आगमन का
जा रही सागर को गंगा फिर हिमालय मोड़ आया
देह केवल शेष है मैं प्राण नगरी छोड़ आया।