पत्रकारिता के संदर्भ में दो शब्द अक्सर सुनने को मिलते हैं राष्ट्रीय
पत्रकार और क्षेत्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय समाचार पत्र और क्षेत्रीय समाचार पत्र,
नेशनल चैनल और रीजनल चैनल। सवाल यह उठता है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय
दोनों के मापदंड क्या हैं ? एक कच्चा पक्का
जवाब आता है कि जो समाचार पत्र या समाचार चैनल पूरे देश की ख़बरें चलाये वह
राष्ट्रीय है बाकी कुछ क्षेत्र विशेष की
खबर चलाने वाले क्षेत्रीय की श्रेणी में आते हैं। जब हम इस मापदंड से अखबारों और
न्यूज़ चैनलों को देखते हैं तो सहज ही हमें यह पता चल जाता है कि इस किसिम का भेद
महज तथाकथित बड़े घरानों के अहंकार और तथ्यों की आधारहीनता के अलावा और कुछ भी नही है। दिल्ली
का चैनल जब दिल्ली की नगरपालिका चुनाव पर पूरे हप्ते कार्यक्रम चला सकता है और
उसकी दृष्टि में तमिलनाडू या पुदुच्चेरी
के नगरपालिकाओं के चुनावों की कोई अहमियत नही होती तो इस तथ्य को सहज ही समझा जा
सकता है कि राष्ट्रीयता और क्षेत्रीयता के पैमाने क्या हो सकते हैं। कम से
कम दूरदर्शन के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण को देखकर संतोष होता है कि यह भारत
के विभिन्न भागों के समाचार कला संस्कृति को तवज्जो देता है वरना जितने भी निजी
चैनल राष्ट्रीय होने का हवाला देते हैं सबकी राष्ट्रीयता किसी ख़ास और दिखाऊ खबर या
व्यक्ति या स्थान तक सीमित रहती है। राष्ट्रीय
चैनल होने न होने पर एक और जवाब आता कि दर्शकों
और पाठको तक पहुंच के आधार पर इस बात का फैसला होना चाहिए। इस
कसौटी पर अगर हम दिल्ली से निकलने वाले एक तथाकथित क्षेत्रीय अखबार के ऑनलाइन
व्यूअरशिप को देखें तो यह दिल्ली से
ज्यादा बिहार में पढ़ा जाता है तो इसका
तात्पर्य क्या निकाला जाना चाहिए ? मतलब साफ़ है। राष्ट्रीय या क्षेत्रीय होने का ठप्पा लगाने
वालों की एक जमात है जो किसी समूह को विशेष सुविधा प्रधान करने या किसी को वंचित
रखने के उद्देश्य से इस किसिम की ठप्पेबाजी करते रहते हैं और जिनको परम्परा के रूप
में स्वीकार भी लिया गया है। यह स्थिति एक विभाजनकारी मानसिकता का धीरे धीरे
पोषण करती है। दिल्ली में बैठी नेशनल
मीडिया मात्र राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र और उत्तर प्रदेश के प्रभुत्वशाली
क्षेत्रों को ही सम्पूर्ण राष्ट्र मानकर चलती है।
ऐसे में न तो दिल्ली के नागरिक को
तमिल के दुःख सुख का पता ही नही होता है और तमिल नागरिक दिल्ली को अपनी राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़कर
देखने में उदासीन बना रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि किसी खबर या खबरनवीस को राष्ट्रीय या क्षेत्रीयता के आधार पर मापने की
बजाय उसे निरपेक्ष ढंग देखा समझा इसी में पत्रकारिता की उत्तरजीविता और सशक्तता निहित है वरना
अन्तराष्ट्रीय जगत में भारत की पत्रकारिता को सबसे निचले पायदान पर ही हमेशा देखना पडेगा।
बहुत समय पहले शैली की एक कविता पढी थी, 'ओड टू द वेस्टर्न विंड'। भाव यह था कि स्वय को तप्त रखकर यह पवन बारिश का कारण बन जाता है। तीव्र वेग होने के कारण जमीन पर छितरे झाड झंख़ाडो को उडा ले जाता है। इसकी दिशा हमेशा पूर्व की ओर है। वह कविता मन मे बस गयी। बरसो बरस बाद मेरे द्वारा बनाया गया यह ब्लाग उसी भाव का स्फुटन है।
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