सोमवार, 7 मार्च 2016

का देइ के सिउ के मनाई हो


शिवरात्रि के दिन सुबह नहा धोके ऊख बईर बेलपत्र और बताशे के साथ निमिया के डरिया नीचे सालिकराम पर गाँव की काकी, माई, आजी, भउजी, फुआ बहिनी सब पहुँचती। पियरी पहिने गाती हुयी......
का देइ के सिउ के मनाई हो सिउ मानत नाही।
घोड़ा अउ गाडी सिउ के मनही न भावे
बौरहवा बैल कहाँ पाई हो क़ि सिउ मानत नाही। का.......
पूड़ी मिठाई सिउ के मनही न भावे
भांग धतूरा कहाँ पाई हो कि सिउ मानत नाही।
का.....
सोना अउ चांदी सिउ के मनही न भावे
कीरा अउ बिच्छी कहाँ पाई हो कि सिउ मानत नाही।
का...
भोलेनाथ को गेंदे कनेर गुडहल के फूलों से खूब सजाया जाता। आज चाईनीज बल्बों से क्या सजावट होगी जो हम सब फूल पत्तों से सालिकराम को सजाते थे। गाँव में पूजन के बाद तेरस देखने गौरी शंकर मंदिर की और पलटन रवाना होती। तब कांवरियों का आतंक नही होता था। सब प्रेम से दर्शन कर मेले में घूमते और दैनिक खरीददारी कर वापस आते। होली के लिए रंग चोटहिया जलेबी और किस्सा शीत बसन्त का या इसी तरह की किस्से कहानियों वाली किताबें साथ में दया की दुकान से फ़ोटू लिए मैं कमलेश भैया के साथ कूदते फांदते घर आता।
रात में रसभंगा चढ़ाये के गुरु ढोल और मंजीरा के साथ दे फगुआ दे फगुआ और फगुये में शिव बियाह।

बैठ बरधा पे भोले बियाहन चले...😂😂😂😂


1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

वक्त वक्त की बात है क्या कहें। . सच बदलाव देख मन में कसक से उठकर रह जाती हैं