सोमवार, 10 अगस्त 2015

राम खेलावन कईसे संपरी

बिल्ली रोएस भरी दोपहरी
राम खेलावन कईसे संपरी।  

पटा इनारा हटा दुआरा
ड्योढ़ी वाला बंद मोहारा
डंडवारी के उठिगै छूही,
राम खेलावन कईसे संपरी। 

बाप पूत मा रार मची है
भाईन में तलवार खिंची है
बाबा मरिगै पड़ी है अर्थी,
राम खेलावन कईसे संपरी।  

मेहरारू बीएड अलबत्ता
मंगरू मांगि रहे हैं भत्ता
लरिका बेंचे मरचा मुरई,
राम खेलावन कईसे संपरी। 

खेत कियारी सरपत जामें
फरसा कऊन चलावे घामें
मोबाइल पे लगी है अँगुरी,
राम खेलावन कईसे संपरी। 

रिश्ता नाता होइगै कीसा
गऊँवा में घुसिगे अमरीका
खेत बेंचि के खायें बरफी,
राम खेलावन कईसे संपरी।







3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

रिश्ता नाता होइगै कीसा
गऊँवा में घुसिगे अमरीका
खेत बेंचि के खायें बरफी,
राम खेलावन कईसे संपरी।
… बहुत सटीक चिंतन

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बजरंगी भाईजान का सब्स्टिटूट - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

SEO ने कहा…

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