प्यासी प्यासी नदी रहेगी जंगल जंगल रोयेगा।
सागर सा तन लिये उदासी मन गंगाजल रोयेगा।।
सागर सा तन लिये उदासी मन गंगाजल रोयेगा।।
बहते दरिया को गर यूँ ही जंजीरों में बाँधोगे,
जिस दिन सावन आयेगा उस दिन ये बादल रोयेगा।।
जिस दिन सावन आयेगा उस दिन ये बादल रोयेगा।।
कभी नही लौटा बेटा जिस दिन से जा परदेस बसा,
अबकी बारिश में भी अम्मा का फिर आँचल रोयेगा।।
सुना कि फिर से जहर पिया है इक दीवानी मीरा ने,
उस पगली के नाम से अब ये कान्हा पागल रोयेगा।।
उस पगली के नाम से अब ये कान्हा पागल रोयेगा।।
जब जब दो दिल प्यार करेंगे याद तुम्हारी आयेगी ,
मेरी आँखे हँस देंगी पर तेरा काजल रोयेगा।।
मेरी आँखे हँस देंगी पर तेरा काजल रोयेगा।।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर लफ्ज़ सुंदर भाव
सुन्दर पंक्तियाँ !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत ह
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