छब्बीस जनवरी की तैयारी एक हप्ते पहले से ही शुरू हो जाती। हम बच्चो में अजीब सा उत्साह होता। कुछ में मिठाई खाने की, कुछ में जोर से नारे लगाने में, कुछ में तिरंगे को थाम प्रभात फेरी कराने को लेकर। हमारे पटीदार वकील साहब के सुपुत्र चिरंजीव रवीन्द्र बड़ेवाले मिठाईखोर थे। मास्टर की आँख में धूल झोंक कर लड्डू कैसे उडाये यह कला रवीन्द्र में पैदायशी थी।
सुबह सात बजे हम सब स्कूल पहुँच जाते। प्रधानाचार्य जी के साथ गांधी टोपी लगाये मूंछो पर ताव दिये बाबू मैन बहादुर सिंह अकड़ के साथ तिरंगा फहराते। जन गण मन की धुन से हमारे रोम रोम पुलकित हो जाते थे जो आज भी बदस्तूर जारी है। देश को क्या निछावर कर दूं मन कुलांचे मारता।
झंडारोहण के बाद प्रभात फेरी का कार्यक्रम होता था।' क्लास मॉनिटर होने के नाते विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा' गाते हुये मैं तिरंगे को लेकर आगे आगे चलता पीछे बच्चा फ़ौज। फेरी गाँव के सब दरवाजे से होकर गुजरती थी। हर दरवाजे पर जाकर भारत माता की जय जोर से बोलता। घर के लोग कुछ न कुछ हम लोगों को खाने को देते कुछ पैसा देते। फेरी के दौरान हम सुक्खू कक्का के यहाँ पहुंचे वो गोबर बटोर रहे थे, आचार्यजी ने पूंछा,' काहे हो सबेरे सबेरे गोबर बटोर रहे ?' सुक्खू बोले ' का करी मास्टर साहेब बाजा (रेडियो) में सुने है कऊनो रूस से गोबराचोर आवा है एही बार इही खातिर सब गोबर बटोर के फटाफट खेतवा में डरवावत हई।' सब हंस पड़े। मिखाईल गोर्वाच्योफ़ उन दिनों मुख्य अतिथि थे शायद।
वापस स्कूल आने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। समूहगान में 'हे हो संवरिया तु जईहो बजरिया लियईहो चुनरिया खादी की...जय बोलो महतमा गांधी की' मन को छूने वाला होता था। एक महेंद्र नाम का लड़का था बहुत प्यारा गाता था ' जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा वो भारत देश है मेरा' ...पूरा माहौल झुमा देता था। 'कमल के फुलवा के उडी उडी खिलावे भंवरा' चन्द्रकेश गाता था। बाबूसाहब भी गाना सुनाते थे 'आओ बच्चों तुम्हे दिखायें झांकी हिन्दुस्तान की इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की'।
मिष्ठान वितरण की घोषणा के साथ हम सब चौकन्ने हो जाते थे। मुद्दा था की मिठाई खानी भी है घर भी ले जाना है। इस मौके पर रवीन्द्र की कलाकारी देखते ही बनती थी। वह तब तक बार बार लाइन में लग लड्डू लाता रहता जब तक पकड़ा ना जाता। लड्डू खाते भारत माता की जय करते हम घर वापस लौटते।
छब्बीस जनवरी की हार्दिक शुभकामनायें :)
सुबह सात बजे हम सब स्कूल पहुँच जाते। प्रधानाचार्य जी के साथ गांधी टोपी लगाये मूंछो पर ताव दिये बाबू मैन बहादुर सिंह अकड़ के साथ तिरंगा फहराते। जन गण मन की धुन से हमारे रोम रोम पुलकित हो जाते थे जो आज भी बदस्तूर जारी है। देश को क्या निछावर कर दूं मन कुलांचे मारता।
झंडारोहण के बाद प्रभात फेरी का कार्यक्रम होता था।' क्लास मॉनिटर होने के नाते विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा' गाते हुये मैं तिरंगे को लेकर आगे आगे चलता पीछे बच्चा फ़ौज। फेरी गाँव के सब दरवाजे से होकर गुजरती थी। हर दरवाजे पर जाकर भारत माता की जय जोर से बोलता। घर के लोग कुछ न कुछ हम लोगों को खाने को देते कुछ पैसा देते। फेरी के दौरान हम सुक्खू कक्का के यहाँ पहुंचे वो गोबर बटोर रहे थे, आचार्यजी ने पूंछा,' काहे हो सबेरे सबेरे गोबर बटोर रहे ?' सुक्खू बोले ' का करी मास्टर साहेब बाजा (रेडियो) में सुने है कऊनो रूस से गोबराचोर आवा है एही बार इही खातिर सब गोबर बटोर के फटाफट खेतवा में डरवावत हई।' सब हंस पड़े। मिखाईल गोर्वाच्योफ़ उन दिनों मुख्य अतिथि थे शायद।
वापस स्कूल आने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। समूहगान में 'हे हो संवरिया तु जईहो बजरिया लियईहो चुनरिया खादी की...जय बोलो महतमा गांधी की' मन को छूने वाला होता था। एक महेंद्र नाम का लड़का था बहुत प्यारा गाता था ' जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा वो भारत देश है मेरा' ...पूरा माहौल झुमा देता था। 'कमल के फुलवा के उडी उडी खिलावे भंवरा' चन्द्रकेश गाता था। बाबूसाहब भी गाना सुनाते थे 'आओ बच्चों तुम्हे दिखायें झांकी हिन्दुस्तान की इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की'।
मिष्ठान वितरण की घोषणा के साथ हम सब चौकन्ने हो जाते थे। मुद्दा था की मिठाई खानी भी है घर भी ले जाना है। इस मौके पर रवीन्द्र की कलाकारी देखते ही बनती थी। वह तब तक बार बार लाइन में लग लड्डू लाता रहता जब तक पकड़ा ना जाता। लड्डू खाते भारत माता की जय करते हम घर वापस लौटते।
छब्बीस जनवरी की हार्दिक शुभकामनायें :)