आज डी एन डी पुल से यमुना का जो मनोहारी रूप देखा रहा नही गया। बाइक खड़ी कर नीचे कछार में कूद गया। ठंडी जमुन जलधार को हथेली में लिया माथे लगाया। हल्की हल्की फुआर पड़ रही थी। कछार से निकल कर जब कॉलेज के लिए चला तो कुछ पंक्तियाँ अपने आप फूटने लगी जो आपके सामने हैं।
मोरी जमुना जुड़इहें ना।
मद्धिम मद्धिम जल बरसइहो
मोरी जमुना अघइहें ना।
कदम के नीचे श्याम खड़े हैं
मुरली अधर लगाये
बंसिया बाज रही बृंदाबन
मधुबन सुध बिसराये
हौले हौले पवन चलइहो
मोरी जमुना लहरिहें ना।
रिमझिम रिमझिम घन घिर अइहो
मोरी जमुना जुड़इहें ना।
रस बरसइहो बरसाने में
भीजें राधा रानी
गोपी ग्वाल धेनु बन भीजें
भीजें नन्द की रानी
झिर झिर झिर झिर बुन्द गिरइहौ
मोरी जमुना नहइहें ना।
रिमझिम रिमझिम घन घिर अइहो
मोरी जमुना जुड़इहें ना।