अरविन्द केजरीवाल पर मै कुछ कहना नही चाहता था. वह मनमोहन सिह जैसे एक ईमानदार व्यक्ति है. लेकिन आज जब मैने ये
देखा कि वह व्यक्ति 14 फरवरी को भगत सिह के शहादत की सजा वाला दिन सोच करके उसी
दिन इस्तीफा देकर खुद को शहीदेआजम मैचिंग
मैचिंग कर रहा है तो रहा नही गया. झूठ बोलने की कोई सीमा तय नही है क्या? या ”आप” इतने
बडे मूर्ख है कि यह पता नही कि भगत सिह को सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनायी गयी थी. दिल्ली
की जनता की समझ और जागरूकता की दाद देता हू कि उन्होने विकल्प के रूप मे इन लोगो
को मौका दिया जो स्वघोषित “आम आदमी” थे. लेकिन अब एक डर समा गया है मुझमे, वही डर
जो “हार की जीत” वाले “बाबा भारती” को था.
मै आम आदमी पार्टी के सभी
मेरे मित्रो से पूछता हू
1.क्या बाकी पार्टियो के सदस्य आम आदमी नही होते? मै भाजपा का समर्थन
करता हू क्या मै इनके “आम आदमी” के पैरामीटर मे नही आता?
2.“आम आदमी” होने का मतलब आम आदमी पार्टी के समर्थन से ही तय होता है?
3.क्या मुख्यमंत्री आम आदमी होता है? विधायक आम आदमी होता है?
4.“आप” सिर्फ “रायता” फैलाना जानते है?
5.देश या समाज चलता है तो उसके लिये चीजो को सहेजना पडता है उस सहेजने
की प्रवृत्ति कब आयेगी “आप” मे?
बहुत सारी बाते है किंतु मेरे कुछ मित्र ऐसे है जिनके लिहाज से मै
सार्वजनिक रूप से उन बातो को लिख नही सकता किंतु एक अंतिम बात कहता हू कल मेरे पास
सूचना आयी कि इस केजरीवाल जी का निर्देश था कि “शनिवार को पार्टी के फंड मे हर हाल मे सद्स्य, उनके रिश्तेदार, जानने वाले पैसा जमा करे”. आखिर फंड को कई
गुना बढा हुआ दिखाकर इस्तीफे को सही जो दिखाना था. इतनी नौटंकी क्यो भई? खैर
नौटंकी ही तो ”आप” का एक्स फैक्टर है. किये रहो. अब “आप” का मुकाबला नरेन्द्र मोदी
तो कर नही पायेंगे हा राखी सावंत से सावधान रहियेगा वो ”आप” का डब्बा गोल कर सकती
है.
शुभकामनाये
भगवान सब को सद्बुद्धि दे!