मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

इकतीस दिसम्बर की भीगती शाम















इकतीस दिसम्बर की 

भीगती शाम, 
बारिश से धुली हवायें 
और उनमे घुलती बर्फ 
ज़िस्म में उतर जाती है। 
++++++
नि:शब्द सर्द मौसम
बीते दिनों की कहानी
फिर कह जाता है
कुहासे की खिड़की से
एक ख़त फेंक जाता है।
++++++

जिसमें लिखा है
"तुम कैसे हो"
कुछ बूंदे भी पड़ी है
वहीं दस्तखत के साथ

इकतीस दिसम्बर की 
भीगती शाम। 

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||

शुभकामनायें आदरणीय

Unknown ने कहा…

"इकतीस दिसम्बर की भीगती शाम" बहुत सुन्दर |

AMAN MISHRA ने कहा…

bau sunadr sir.