मैंने अपने नए ब्लॉग http://haridhari.blogspot.com/ जो पर्यावरण संक्षण के लिए समर्पित है पर इस पोस्ट को छपा था किन्तु तकनिकी कारणों से यह हमारीवानी पर दिखाई नहीं दे रही है अतः सुधी पाठको के लिए इसे यहाँ दे रहा हूँ.
आजकल पर्यावरण चेतना फैलाने हेतु दौड़ या रैली निकालने का बड़ा चलन है. सवाल यह है कि इस दौड़ में भाग कौन लेता है? इसमें बड़े बड़े पूजीपति उद्योगपति अभिजात्य तबके के लोग जोर शोर से भाग लेते है. ये लोग खुद तो दौड़ कर क्या दिखाना चाहते है. हरी धरती के सबसे बड़े शत्रु यही लोग है. शौच के लिए पानी नहीं उत्तम कोटि के कागजो का प्रयोग करते है फिर पेड़ो को बचाने के लिए रैली का आयोजन करेगे. दुनिया में मात्र ७ % अभिजात्य देशो से ५० % कार्बन का उत्सर्जन होता है. सच यह है कि सुविधाभोगी वर्ग प्रजातंत्र के सहारे सामान्यजन को अपराधबोध से ग्रस्त करता है. और इस शोर शराबे में मूल प्रश्न दबे रह जाते है.
पर्यावरणीय समस्या की गहन पड़ताल अंततः स्थापित तत्कालीन व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है. यह स्वाभाविक है कि ऐसा कोई भी प्रयास स्थापित शक्तिकेंद्रो(सरकारे) के हितो के अनुकूल नहीं हो सकता. ऐसी स्थिति में ये शक्तिकेंद्र या तो पड़ताल की दिशा मोड़ने का कार्य करते है या दमन का सहारा लेते है. वर्तमान पर्यावरणीय विमर्श में ये दोनों स्थितिया देखी जा सकती है.
हरी धरती शौच हेतु या जहा कपडे का या जल के प्रयोग प्रयोग से काम होता है वहा इस प्रकार के कागजो के प्रयोग न करने का आवाहन करती है. क्योकि इन कागजो को बनाने में जितना पानी खर्च होता है जितने पेड़ काटे जाते है उसका दसवा हिस्सा पानी भी इन कार्यों में खर्च नहीं होता है.