तुम्हारी ज़ुल्फ़ से गिरती मेरे कंधे भिगोती है,
बिना बादल बिना मौसम के ये बरसात कैसी है।
बिना बादल बिना मौसम के ये बरसात कैसी है।
सियाही ख़त्म होती है मगर पन्ने नही भरते,
तुम्हे पाकर तुम्हे खोना कहानी बस ज़रा सी है।
तुम्हे पाकर तुम्हे खोना कहानी बस ज़रा सी है।
उधर होंटों पे पाबन्दी इधर अल्फाज़ रूठे से ,
हमारे बीच खामोशी की इक दीवार उठती है ।
हमारे बीच खामोशी की इक दीवार उठती है ।
बना कर बाँध क्या करते नही इक बूँद पानी की,
कभी कोई नदी थी अब जहां पर रेत रहती है।
कभी कोई नदी थी अब जहां पर रेत रहती है।
मुहब्बत फिर से हो जाए खता मेरी नही होगी,
तुम्हारे शक्ल जैसी एक लड़की रोज मिलती है।
तुम्हारे शक्ल जैसी एक लड़की रोज मिलती है।
3 टिप्पणियां:
वाह
ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/11/2018 की बुलेटिन, " काहे का बाल दिवस ?? “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर ! किसी दिल-फ़ेंक आशिक़ को एक ही लैला के इश्क़ में दिन रात तड़पना कहाँ पसंद आता है? 'तुम्हारे शक्ल जैसी एक लड़की रोज़ मिलती है.' ऐसा कहना तो बहाना है. जुड़वा बहने फ़िल्मों में बहुत होती हैं, असल ज़िन्दगी में बहुत कम होती हैं.
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