शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

उत्तर प्रदेश मैं बोल रहा हूँ, प्रश्न चिन्ह बन खौल रहा हूँ।

उत्तर प्रदेश मैं बोल रहा हूँ
प्रश्न चिन्ह बन खौल रहा हूँ।
अपराधों का बोझ उठाये
गांठे अपनी खोल रहा हूँ।

जाति धरम में बाँट बाँट कर
हिस्से हिस्से काट काट कर
मुझको कितना छला गया है
कितना मुझको जला दिया है

भूख गरीबी बेकारी बस
मेरे हक में लाचारी बस।
जहर बुझा गंगा का पानी
जमुना है गन्दी नाली बस

पत्रकारिता जल जाती है
इज्जत थाने लुट जाती है।
लड़कियां टंगी हैं पेड़ों पर
लड़कों से गलती हो जाती है।

रोज रोज व्यभिचार यहां पर
खतम हुआ रोजगार यहां पर।
जोखुआ पिटता रहा बंबई
सजती रही खूब सैफई ।

सीना मेरा  चाक हुआ है
दंगों में सब ख़ाक हुआ है।
खलिहानों से फसलें गायब
पुर्जा पुर्जा राख हुआ है।

नकली विद्यालय हैं अब तो
नकल परीक्षा होती अब तो।
जाहिल शिक्षाविद के चलते
चौपट हुयी पढाई अब तो।

गिरवी पर मैं रखा गया हूँ
शोषित वंचित किया गया हूँ।
जो भी आया जी भर नोचा
खुद को हारा समझ गया हूँ।

घायल हाथों से मैं अपनी
रुकती नब्ज़ टटोल रहा हूँ।
उत्तर प्रदेश मैं बोल रहा हूँ
प्रश्न चिन्ह बन खौल रहा हूँ।

डॉ पवन विजय

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "निजहित, परहित और हम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !