गुजरती शाम छत पे चाँद आहिस्ता उतरता है
तेरी यादों के जंगल में कहीं चंदन महकता है ।
तेरी यादों के जंगल में कहीं चंदन महकता है ।
कहाँ ले जायेगी ये इश्क की दीवानगी हमको
बरसते बादलो की प्यास दरिया कब समझता है।
बरसते बादलो की प्यास दरिया कब समझता है।
कभी पतझड़ सा होता है कभी मधुमास बन जाता
तेरी झुकती हुयी पलकों से मौसम रुख बदलता है।
तेरी झुकती हुयी पलकों से मौसम रुख बदलता है।
मिटाकर के सियाही रात की सूरज निकालेगा
इसी उम्मीद में कोई दिया बुझ बुझ के जलता है।
इसी उम्मीद में कोई दिया बुझ बुझ के जलता है।
कयामत को हमारा हाल क्या होगा पता फिर भी
तेरे ही नाम से काफिर ये पागल दिल धडकता है।
तेरे ही नाम से काफिर ये पागल दिल धडकता है।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को
आज प्रियतम जीवनी में आ रहा है; चर्चा मंच 1900
पर भी है ।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
मिटाकर के सियाही रात की सूरज निकालेगा
इसी उम्मीद में कोई दिया बुझ बुझ के जलता है।
बहुत खूब।
मिटाकर के सियाही रात की सूरज निकालेगा
इसी उम्मीद में कोई दिया बुझ बुझ के जलता है।
बहुत खूब।
बहुत सुन्दर...
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