धुली धूप और खिली जुन्हाई गाँव से लेकर आया हूँ,
अम्बर भर आशीष लिए मैं माँ से मिलकर आया हूँ।
कच्ची मिट्टी कच्चे पानी से ही फसलें पकती हैं,
बाबा की यह बात पुरानी गाँठ बाँध कर लाया हूँ।
अम्बर भर आशीष लिए मैं माँ से मिलकर आया हूँ।
कच्ची मिट्टी कच्चे पानी से ही फसलें पकती हैं,
बाबा की यह बात पुरानी गाँठ बाँध कर लाया हूँ।
सात रंग के बादल जब अमृत रस बरसाते हैं,
सरसों के फूलों के रस गुड से मीठे हो जाते हैं।
सूरज की थैली से जुगनू लिए उजाले फिरते हैं ,
मौसम की झोली से मैं भी कुछ दाने ले आया हूँ।
मैनें देखा खेतों में खुशियों की बुआई होती है,
मैनें देखा हर घर में रिश्तों की चिनाई होती है।
श्रम के स्वेदकणों से मैनें अंचलगीत महकते देखे,
गाँव की माटी माथे रख बड़भागी होकर आया हूँ।
4 टिप्पणियां:
श्रम के स्वेदकणों से मैनें अंचलगीत महकते देखे,
गाँव की माटी माथे रख बड़भागी होकर आया हूँ।
..गाँव की मिटटी की सौंधी सुगंध से भरी सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर रचना...
मैनें देखा खेतों में खुशियों की बुआई होती है,
मैनें देखा हर घर में रिश्तों की चिनाई होती है।
श्रम के स्वेदकणों से मैनें अंचलगीत महकते देखे,
गाँव की माटी माथे रख बड़भागी होकर आया हूँ।
बहुत सुन्दर १
दिल की बातें !
वाह, बहुत खूब
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