गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

क्या तुमने बसंत को आँचल से बाँध रखा है?













अधखिले  है गुलमोहर
और कोयल,
मौन प्रतीक्षारत है
फूटे नहीं
बौर आम के,
नए पत्तो के अंगारे
अभी भी
ओस से गीले है,
सांझ ने उड़ेल दिया  
सारा सिन्दूर
ढाक के फूलो में
पर, 
रक्तिम आभा ओझल है 
ओ सखी, 
क्या तुमने बसंत को 
आँचल से बाँध रखा है?